जब कर्मेश सुख अथवा कर्म-स्थान में हो तो व्यक्ति सखी पराक्रमी, गुरु तथा देवताओं की पूजा में तत्पर, धर्मात्मा तथा सत्य होता है।
Author Archives: Rajkumar Jain
कुंडली में प्रथमतः जो ग्रह शुभ दिखता है उसका फल कभी-कभी बिल्कुल नहीं मिलता क्यांकि वह ग्रह उस कुंडली में वास्तव में शुभ नहीं होता। बारह लग्नों के लिए शुभाशुभ ग्रह के अनुसार ग्रह का ज्योतिषीय फल कथन कहना चाहिए।
दक्षिण की ओर पैर करके सोने पर चुम्बकीय धारा पैरों से प्रवेश करेगी है और सिर तक पहुंचेगी. इस चुंबकीय ऊर्जा से मानसिक तनाव बढ़ता है और सवेरे जगने पर मन भारी-भारी रहता है।
श्री सिद्द रोजी रोजगार यन्त्र व्यवसाय में उन्नति होने में बहुत सहायक है। व्यापारिक स्थितिया एवं वातावरण अनुकूल हो जाता है।
जो भूमि बोये हुए बीजों की तीन दिन में उगाने वाली, सम चौरस, दीमक रहित बिना फटी हुई शल्य रहित और जिसमें पानी का प्रवाह पूर्व ईशान या उत्तर तरफ जाता हो ऐसी भूमि सुख देने वाली है।
नीच और शत्रु ग्रह की दशा में परेदश में निवास, वियोग, शत्रुओं से हानि, व्यापार से हानि, दुराग्रह, रोग, विवाद और नाना प्रकार की विपत्तियाँ आती हैं। यदि ये ग्रह सौम्य ग्रहों से युत या दृष्ट हों तो बुरा फल कुछ न्यून रूप में मिलता है।
राहु की महादशा में राहु, बृहस्पति, शनि, बुध, केतु, शुक्र, सूर्य, चन्द्रमा एवं मंगल की अन्तर्दशा का फल
सप्तमेश लग्न अथवा सप्तम स्थान में हो तो व्यक्ति परस्त्रियों में लम्पट, दुष्ट, चतुर, धैर्यवान और सदा वातरोग से युक्त होता है।
जब षष्ठेश सप्तम, लाभ स्थान अथवा लग्न में हो तो व्यक्ति कीर्ति गुणवान, धनवान, अभिमानी, साहसी और पुत्रहीन होता है।
वास्तु शास्त्र में उल्लेख है केि प्राकृतिक रूप से यदि भूमि की आठ दिशाओं का परिमाण सम और चौरस हो तो वह भूमि उत्तम है।