वक्री, मार्गी नीच और शत्रु क्षेत्री ग्रह की दशा अन्तर्दशा फल
वक्रीग्रह की दशा का फल
वक्रीग्रह की दशा में स्थान, धन और सुख का नाश होता है; परदेशगमन तथा सम्मान की हानि होती है।
मार्गीग्रह की दशा का फल
मार्गीग्रह की दशा में सम्मान, सुख, धन, यश की वृद्धि, लाभ, नेतागिरी और उद्योग की प्राप्ति होती है। यदि मार्गीग्रह ६।८।१२वें भाव में हो तो अभीष्ट सिद्धि में बाधा आती है।
नीच और शत्रुक्षेत्री ग्रह की दशा का फल
नीच और शत्रु ग्रह की दशा में परेदश में निवास, वियोग, शत्रुओं से हानि, व्यापार से हानि, दुराग्रह, रोग, विवाद और नाना प्रकार की विपत्तियाँ आती हैं। यदि ये ग्रह सौम्य ग्रहों से युत या दृष्ट हों तो बुरा फल कुछ न्यून रूप में मिलता है।
अन्तर्दशा फल-
१. पापग्रह की महादशा में पापग्रह की अन्तर्दशा धनहानि, शत्रुभय.. और कष्ट देनेवाली होती है।
२. जिस ग्रह की महादशा हो उससे छठे या आठवें स्थान में स्थित ग्रहों की अन्तर्दशा स्थानच्युत, भयानक रोग, मृत्युतुल्य कष्ट या मृत्यु देनेवाली होती है।
३. पापग्रह की महादशा में शुभग्रह की अन्तर्दशा हो तो उस अन्तर्दशा का पहला आधा भाग कष्टदायक और आखिरी आधा भाग सुखदायक होता है।
४. शुभग्रह की महादशा में शुभग्रह की अन्तर्दशा धनागम, सम्मानवृद्धि, सुखोदय और शारीरिक सुख प्रदान करती है।
५. शुभग्रह की महादशा में पापग्रह की अन्तर्दशा हो तो अन्तर्दशा का पूर्वार्द्ध सुखदायक और उत्तरार्द्ध कष्टकारक होता है।
६. पापग्रह की महादशा में अपने शत्रुग्रह से युक्त पापग्रह की अन्तर्दशा हो तो विपत्ति आती है।
७. शनिक्षेत्र में चन्द्रमा हो तो उसकी महादशा में सप्तमेश की महादशा परम कष्टदायक होती है।
८. शनि में चन्द्रमा व चन्द्रमा में शनि का दशाकाल आर्थिक रूप से कष्ट देता है।
९. बृहस्पति में शनि और शनि में बृहस्पति की दशा खराब होती है।
१०. मंगल में शनि और शनि में मंगल की दशा रोगकारक होती है।
११. शनि में सूर्य और सूर्य में शनि की दशा गुरुजनों के लिए कष्टदायक तथा अपने लिए चिन्ताकारक होती है।
१२. राहु और केतु की दशा प्रायः अशुभ होती है, किन्तु जब राहु ३।६।११ वें भाव में हो तो उसकी दशा अच्छा फल देती है।