राहु की महादशा – अन्तर्दशा का फल

राहु की महादशा - अन्तर्दशा का फल

राहु की महादशा – अन्तर्दशा का फल

(१) राहु की महादशा में राहु की अन्तर्दशा का फल :
विष और जल के कारण रोग हो। जातक को सर्प का दशन हो। दूसरे आदमी की स्त्री से संयोग हो । अपने किसी इष्टजन का वियोग हो । जातक कड़ी बोली बोले । और उसे दुष्टजनों के कारण कष्ट हो।

(२) राहु की महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा का फल :
सुख की प्राप्ति हो, देवताओं, ब्राह्मणों का पूजन हो, शरीर में कोई रोग न रहे और सुन्दर नेत्र वाली स्त्रियों से समागम हो । विद्वत्ता के विचार-विनिमय और धार्मिक शास्त्रार्थ में समय व्यतीत हो।

(३) राहु की महादशा में शनि की अन्तर्दशा का फल :
अपनी स्त्री, पुत्रों और भाईयों से झगड़ा हो । जातक को पदच्युति हो और उसके नौकरों का नाश हो । शरीर में चोट लगे तथा वात और पित्त के कारण रोग हो।

(४) राहु की महादशा में बुध की अन्तर्दशा का फल : धन और पुत्र की प्राप्ति हो, मित्रों से समागम हो, मन में प्रसन्नता हो । जातक चातुर्य से कार्य करे । भूषण तथा कुशलता प्राप्त हो । संक्षेप में यह है कि राहु और बुध मित्र हैं और बुध से क्रिया कुशलता, चतुरता व्यापार आदि का विचार किया जाता है। इस कारण राहु की महादशा में बुध की अन्तर्दशा में बुध से सम्बन्धित कार्यों में शुभता और वृद्धि लाती है।

(५) राहु की महादशा में केतु की अन्तर्दशा का फल :
इस अन्तर्दशा में अशुभ फल होता है । ज्वर, अग्नि, शस्त्र और यात्रुओं से भय हो, सिर में रोग हो, शरीर में कम्प हो, जातक को विष और व्रण के कारण कष्ट हो। मित्रों से कलह हो और जातक के मित्रों और गुरु जनों को व्यथा हो।

(६) राहु की महादशा में शुक्र की अन्तर्दशा का फल ::
स्त्री की प्राप्ति हो । स्त्री-सहवास का सुख हो। हाथी, घोड़े और जमीन की प्राप्ति हो या इनका उपभोग प्राप्त हो । किन्तु अपने आदमियों से विरोध हो और जातक को वात और कफ के कारण रोग हो।

(७) राहु की महादशा में सूर्य के अन्तर का फल :
शत्रु से पीड़ा हो, अनेक आपत्तियां आवें विष और अग्नि से पीड़ा हो। वस्त्र से चोट लगे । और जातक के नेत्रों को अति पीड़ा हो। जातक को राजा या सरकार से महान् भय उपस्थित हो और उसकी स्त्री तथा पुत्र को भी कष्ट हो । राहु और सूर्य शत्रु हैं। इस कारण यह अन्तर्दशा इतना अशुभ प्रभाव दिखाती है।

(८) राहु की महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा का फल :
स्त्री का विनाश हो, लोगों से कलह हो । मन को सन्ताप हो, मित्रों पर विपत्ति पड़े । जल से भय हो । कृषि, धन, पशु और सन्तान की हानि हो।

(९) राहु की महादशा में मंगल की अन्तर्दशा का फल :
राजा, अग्नि, चोर और अस्त्र से भय हो या तो जातक का शरीर नाश हो जाये या मानस रोग हो । नेत्रों को पीड़ा हो, हृदय रोग (Heart trouble) हो और जातक अपने पद से भ्रष्ट हो जाये । अर्थात् स्थान हानि का भय हो।

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