प्रथम भाव में शनि और चन्द्रमा का योग माता-पिता की मृत्यु का कारक है। दूसरों के द्वारा जातक का पालन पोषण हो। जातक को शनि चन्द्र योग ग्रह के प्रभाव से अपमानित एवम् संघर्षमय जीवन व्यतीत करना पड़ता है। जातक लम्बी आयु वाला संघर्षशील होगा।
द्वितीय भाव में शनि-चन्द्र का योग धनहानि कारक है तथा शिक्षा की कमी करता है।
तृतीय भाव में शनि-चन्द्र के योग के प्रभाव से जातक का जीवन कष्टमय व्यतीत होता है। 40 वर्ष के पश्चात् सुख का समय आता है।
यदि जातक की कुण्डली के चतुर्थ भाव में शनि- चन्द्रमा का योग हो तो जातक दुःखी रहता है।
पंचम भाव में शनि-चन्द्र का योग निःसन्तान, दाम्पत्य सुख में कमी तथा धार्मिकता का प्रतीक है।
षष्ठम भाव में यह योग हो तो जातक रोगी होता है।
सप्तम भाव में शनि-चन्द्र का योग जातक की आजीविका के साधन प्रदान करने का कारक है। जातक शान्त स्वभाव वाला होता है।
अष्टम भाव में शनि- चन्द्र की युति हो तो जातक रोग में पीड़ित रहता है।
नवम भाव में यह योग जातक के जीवन को स्थिर नहीं होने देता।
दशम भाव में शनि-चन्द्र का योग जातक के कर्म क्षेत्र को प्रभावित करता हैं।
एकादश भाव में शनि-चन्द्र का योग धन सुख एवम् सन्तान सुख प्रदान करता है।
जातक की कुण्डली के द्वादश भाव में शनि-चन्द्र का योग जातक को साढ़ेसाती का प्रभाव डालता है जिसके कारण जातक के जीवन काल में अनेक प्रकार के उतार-चढ़ाव आते हैं। जातक के जीवन में कई शुभ अशुभ प्रभाव होते है।
Rajkumar Jain
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