कुण्डली के प्रथम भाव में शनि का मंगल से योग जातक के व्यवसाय के क्षेत्र में बाधा पहुंचाता है। इसका विशेष प्रभाव मेष, तुला और मकरगत राशियों पर होता है।
दूसरे भाव में यह योग पैतृक सम्पत्ति का नाश करता है। जातक कठोर प्रकृति का होगा।
कुण्डली के तृतीय भाव में शनि का मंगल से योग हो तो दरिद्रता, अधिक सन्तान, जातक का जीवनकाल संघर्षपूर्ण होगा। रोजी-रोजगार सामान्य होगे।
चतुर्थ भाव में शनि-मंगल योग के प्रभाव से जातक की भाग्योन्नति 25 वर्ष के पश्चात् ही होगी। जातक को माता-पिता का वियोग भी हो सकता है।
पंचम भाव में शनि-मंगल का योग जातक को उच्च शिक्षा प्रदान करता है। जातक भूगर्भशास्त्र का ज्ञाता, डाक्टर आदि बनेगा किन्तु ऐसे जातक ज्यादातर छल-कपट वाले तथा स्वार्थी होते हैं।
षष्ठम भाव में योग हो तो जातक दुस्साहती प्रवृत्ति का होगा। मृत्यु से कदापि न डरेगा। न होने वाले कार्य को भी करने का प्रयास करेगा।
सप्तम स्थान में यह युति अत्यंत हानिकारक परिणाम देती है। मंगल के कारण तनाव-विवाद बनता है मगर शनि तुरंत विच्छेद नहीं होने देता। जीवनसाथी के स्वास्थ्य में कष्ट बना रहता है, कटु वक्ता होने के भी योग बनाता है और तालमेल के अभाव में वैवाहिक जीवन दुखी बनाता है।
अष्टम भाव का योग सामान्य भाग्य प्रकट करता है अर्थात् जातक सामान्य जीवन व्यतीत करेगा।
नवम भाव में शनि के साथ मंगल विराजित हो तो इन ग्रहों के यौगिक प्रभाव जातक की स्थायी सम्पत्ति को नष्ट करता है।पारिवारिक कलह का भी द्योतक है। जातक प्रवासी भी हो सकता है।
यदि शनि के साथ मंगल दशम भाव में विराजमान हो तो जातक के भाग्य का द्वार खुल जाता है। ऐसे जातक इन्जीनियर, डाक्टर, वैज्ञानिक, उच्च पदाधिकारी होते हैं।
एकादश भाव का शनि के साथ मंगल योग जातक के लिए महान् शुभ फलदायक हैं।