पक्ष
एक चन्द्रमास में दो पक्ष (शुक्ल तथा कृष्ण) होते हैं। शुक्ल पक्ष के अन्त में 15वीं तिथि को पूर्णिमा तथा कृष्ण पक्ष के अन्त में 30वीं तिथि को अमावस्या कहते हैं। गणना की दृष्टि से कृष्ण पक्ष प्रतिपदा को 16वीं, सप्तमी को 22वीं तथा इसी क्रम में चतुर्दशी को 29वीं तिथि भी कहा जा सकता है।
अमावस्या को चन्द्रमा और सूर्य एक ही राशि व अंशों में (साथ-साथ) होते हैं। उनका राश्यन्तर शून्य होता है। इसीलिए चन्द्रमा दिखाई नहीं देता। प्रतिपदा को चन्द्रमा केवल 12 अंश ही आगे बढ़ पाता है। इसीलिए प्रतिपदा को भी साधारणतया चन्द्रदर्शन नहीं हो पाते। द्वितीया को अन्तर अधिक होने पर चन्द्रमा दिखाई पड़ता है।
चन्द्र मास पूर्णिमा के पश्चात् कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर अगली पूर्णिमा तक रहता है। प्रत्येक मास का कृष्ण पक्ष पहले और शुक्ल पक्ष बाद में आता है। अंधेरे पक्ष को बदी तथा उजले पक्ष को सुदी कहते हैं, अर्थात् पूर्णिमा से अमावस्या तक कृष्ण पक्ष तथा अमावस्या से पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष। कृष्ण पक्ष के अन्त में अमावस्या तथा शुक्ल पक्ष के अन्त में पूर्णिमा आती है।