सूर्य भावगत फल
लग्न में सूर्य फल
यदि लग्न में सूर्य हो तो जातक शूरवीर, रण निर्भय, कठोर हृदय होता है। दूसरे व्यक्ति उसे विचलित नही कर सकते । यह सामान्य फल है। यदि लग्न में मेष राशि का सूर्य हो तो मनुष्य धनी होता है। किंतु नेत्रो में अंधेरा आ जाता है। अर्थात् नेत्र-सम्बन्धी बीमारी होती है। यदि लग्न में सिंह राशि का सूर्य हो तो उसे रात्रि में दिखलाई नही देता (यह एक प्रकार की नेत्र की बीमारी है जिसे ‘रतौधी’ कहते हैं )। यदि तुला राशि का सूर्य लग्न में हो तो मनुष्य धनशून्य होता है और वृद्धावस्था में अँधा होने का भय भी रहता है। यदि कर्क राशि का सूर्य लग्न में हो तो आँख में ‘पूला’ रोग होने का भय रहता है। सूर्य की बारह राशियों में स्थिति का फल शुभ अशुभ राशी अनुसार होता है।
द्वितीय स्थान में सूर्य फल
यदि द्वितीय स्थान में सूर्य हो तो ऐसे मनुष्य के पास बहुत द्रव्य रहता है किंतु उसे सरकार की ओर से धन-दंड (इनकम टैक्स आदि) लगता है, मुख-सम्बन्धी रोग भी होते हैं। सूर्य ग्रह शान्ति के घरेलू टोटके आजमा कर इनके नुकसान को कम किया जा सकता है या बचा जा सकता है।
तृतीय भाव में सूर्य फल
यदि तृतीय भाव में सूर्य हो तो मनुष्य मतिमान् और पराक्रमी होता है।
चौथे भाव मे सूर्य फल
यदि चौथे भाव मे सूर्य हो तो ऐसा व्यक्ति सुखहीन तथा ‘पीड़ित मानस’ (जिसके चित्त मे सदैव संताप हो) होता है।
पंचम मे सूर्य फल
पंचम मे सूर्य होने से उदर रोग करता है। मनुष्य धनहीन होता है और सतान-कष्ट भी करता है।
छठे मे सूर्य फल
छठे मे सूर्य होने से प्रादमी अपने शत्रुओ को जीतता है और बलवान् होता है। किन्तु यदि सूर्य दुर्बल हो तो ऐसा व्यक्ति शत्रुनो से बहुत पीड़ा पाता है।
सप्तम स्थान मे सूर्य फल
यदि सप्तम स्थान मे सूर्य हो तो ऐसा जातक स्त्रियो से अपमानित या तिरस्कृत होता है (अपनी पुरुषार्थ-हीनता के कारण या अन्य किसी कारण से) अर्थात् स्त्री-सुख मे कमी होती है।
अष्टम मे सूर्य फल
यदि अष्टम मे सूर्य हो तो संतान थोड़ी हो और और नेत्र विकार हो।
नवम मे सूर्य फल
नवम मे सूर्य होने से संतान, सौख्य और धन-इन तीनो की प्राप्ति होती है।
दशम मे सूर्य फल
जिस व्यक्ति के दशम मे सूर्य होता है वह शूरवीर होता है और बहुत विद्वत्ता की बातो को सुनता है अर्थात् शास्त्र श्रवण करने वाला होता है।
एकादश भाव में सूर्य फल
एकादश स्थान को लाभ स्थान भी कहते है। एकादश भाव में सूर्य होने से मनुष्य बहुत धनशाली होता है।
द्वादश मे सूर्य फल
द्वादश मे सूर्य होने से मनुष्य पतित-कर्मा और भ्रष्ट होता है।