राशी

राशी

मेष – पुरुष जाति, चरसंज्ञक, अग्नितत्व, पूर्वं दिशा की मालिक, मस्तफ का बोध करानेवाली, पृष्ठोदय, उग्र प्रकृति, लाल-पीले वर्णवाली, कान्तिहीन, क्षत्रियवर्ण, सभी समान अंगवाली और अल्प सन्तति है। यह पित्त प्रकृतिकारक है, इसका प्राकृतिक स्वभाव साहसी, अभिमानी और मित्रों पर कृपा रखनेवाला है।

वृष स्त्री राशि, स्थिर संज्ञक, भूमितत्व, शीतल स्वभाव, कान्ति रहित, दक्षिण दिशा की स्वामिनी, वात प्रकृति, रात्रि बली, चार चरण वाली, श्वेत वर्ण, महाशब्द्कारी विषमोदयी, मध्यम सान्तति, शुभकारक, वैश्पवर्णं और शिथिलि शरीर हैं। यह अर्द्धजल राशी कहलाती है। इसका प्राकृतिक स्वभाव स्वार्थी है, समझ बुझ कर कार्य करनेवाली और सांसारिक कार्यों में दक्ष होती है। इससे कण्ठ, मुख और कपोलों का विचार किया जाता है।

मिथुन – पश्चिम दिशा की स्वामिनी, वायु तत्व, तोते के समान हरित वर्णवाली, पुरुष राशि, द्विस्वभाव, विषमोदयी, उष्ण, शूद्रवर्ण, महाशब्दकारी, चिकनी, दिनबली, माध्यम संतति और शिथिल शरीर है। इसका प्राकृतिक स्वाभाव विध्याध्यनी  और शिल्पी है। इससे  हाथ, शरीर के कंधो और बाहुओं का विचार किया जाता है। 

कर्क – चर, स्त्री जाति, सौम्य और कफ प्रकृति, जलचारी, रात्रिबली, उत्तर दिशा की स्वामिनी, रक्त-धवल मिश्रितवर्ण, बहुचरण एवं सन्तानवाली है। इसका प्राकृतिक स्वाभाव सांसारिक उन्नति में प्रयत्नशीलता, लज्जा का सूचक है। इससे पेट, वक्ष:स्थल और गुर्दे का विचार किया जाता है।

सिहपुरुषं जाति, स्थिरसंज्ञकः, अग्नितत्व , दिनबली, पित्त प्रकृति, पीत वर्णं, उष्ण स्वभावः, पूर्वं दिशा की स्वामिनी, पुष्ट शरीरं, क्षत्रिय वर्णं, अल्पसन्तति, भ्रमणप्रिय और निर्जल राशी है। इसका प्राकृतिक स्वरुप मेष राशी जैसा है, पर तो भी इसमें प्रेम और उदारता विशेष रूप से है। इससे हृदय का विचार किया जाता है।

कन्या – पिंगल वर्ण, स्त्री जाती, द्विस्वभाव, दक्षिण दिशा की स्वामिनी, रात्रि बलि, वायु और शीत प्रकृति, पृथ्वीतत्व और अल्प रान्तान वाली है। इसका प्राकृतिक स्वभाव मिथुन जैसा है, पर विशेषता इतनी है कि अपनी उन्नति और मान पर पूर्ण ध्यान रखने की यह कोशिश करती है। इससे पेट का विचार किया जाता है।

तुला पुरुष जाति, चरसंज्ञकः, वायुतत्व, पश्चिम दिशा की स्वामिनी, अल्प संतान वाली, श्याम वर्ण, शीर्षोदयी, शुद्रसंघयक, दिनबली, क्रूरस्वाभाव और पाद जल राशी है। इसका प्राकृतिक स्वभाव विचारशील, ज्ञान प्रिय और राजनीतिज्ञ है। इससे नाभि के नीचे के अंगों का विचार किया जाता है।

वृश्चिक – स्थिरसंज्ञक, शुभवर्ण, स्त्री जाती, जलतत्व, उत्तर दिशा की स्वामिनी, रात्रिबली, कफ प्रकृति, बहुसन्तति, बाह्मण वर्ण और अर्द्ध जल राशि है । इसका प्राकृतिक स्वभाव दम्भी, हठी, दृढप्रतिज्ञ, स्पष्टवादी और निर्मल है। इससे शरीर के कद एवं जननेन्द्रिय का विचार किया जाता है।

धनु पुरुष जाति, कांचन वर्णं, द्विस्वभाव, क्रूरसंज्ञक, पित्तं प्रकृति दिनबली, पूर्व दिशा की स्वामिनी, दृढ शरीर, अग्नि तत्व, क्षत्रिय वर्ण, अल्प संतति एवं अर्ध जल राशी है। इसका प्राकृतिक स्वभाव अधिकारप्रिय, करुणामय और मर्यादा का इच्छुक है। इससे पैरों की सन्धि तथा जधाओं का विचार किया जाता है।

मकर – चरसंज्ञक, स्त्री जाति, पृथ्वीतत्व, वात प्रकृति, पिंगल वर्ण, रात्रिबली, वेश्य वर्ण, शिथिल शरीर और दक्षिण दिशा की स्वामिनी है। इसका प्राकृतिक स्वभाव उच्च दशाभिलाथी है। इससे घुटनों का विचार किया जाता है।

कुम्भपुरुष जाति, स्थिरसंज्ञक, वायुतत्व, विचित्र वर्ण, शीर्षोदय, अद्धजल, त्रिदोषं प्रकृति, दिनबली, पश्चिम दिशा की स्वामिनी, उष्ण स्वभाव, शूद्र वर्णं, क्रूर एवं मध्यम संतान वाली है।इसका प्राकृतिक स्वाभाव विचारशील, शांत चित्त, धर्म वीर और नवीन बातों का अविष्कारक है। इससे पेट के भीतरी भागों का विचार किया जाता है।

मीन – द्विस्वभाव, स्त्री जाति, कफ प्रकृति, जलतत्व, रात्रिबली, विप्रवर्ण, उत्तर दिशा की स्वामिनी और पिंगल रंग है। इसका प्राकृतिक स्वभाव उत्तम, दयालु और दानशील है । यह सम्पूर्ण जलराशि है। इससे पैरों का विचार किया जाता है।

 
राशियों में आपस में मित्रता और शत्रुता 
पृथ्वीतत्व और जलतत्ववाली राशियों के व्यक्तियों में तथा अग्नितत्व और वायुतत्व राशियों के व्यक्तियों में परस्पर मित्रता रहती है। पृथ्वी और अग्नितत्व एवं जल वायुतत्ववाली राशियों के व्यक्तियों में परस्पर शत्रुता रहती है ।
 
राशियों के स्वामी
मेष और वृश्चिक का मंगल, वृष और तुला का शुक्र, कन्या और मिथुन का बुध, कर्क का चन्द्रमा, सिह का सूर्य, मीन और धनु का बृहस्पति, मकर और कुम्भ का शनि, कन्या का राहु एवं मिथुन का केतु है।
 
शून्यसंज्ञक राशियां
चैत्र में कुम्भ, वैशाख में मीन, ज्येष्ठ में वृष, अषाढ़ में मिथुन, श्रावण में मेष, भाद्रपद में कन्या, आश्विन में वृश्चिक, कार्तिक में तुला, मार्गशीर्ष में धनु, पौष में कर्क, माघ  में मकर एवं फाल्गुन में सिंह शून्यसंज्ञक है।
 
राशियों का अंग-विभाग
द्वादश राशियाँ काल-पुरुष का अंग मानी गयी हैं। मेष को सिर में, वृष को मुख में, गियुन को स्तनमध्य में, कर्क को हृदय में, सिंह को उदर में, कन्या को कमर में, तुला को पेडू  में, वृश्चिक को लिंग में, धनु को जंघा में, मकर को दोनों घुटनों में, कुम्भ को दोनों जाँचों में एवं मीन को दोनों पैरों में माना है।
 
राशियों की प्रकृति
चर- चर स्थिर एवं द्विस्वभाव होता है। मेष, कर्क, तुला, मकर को चर कहते हैं।
स्थिर-वृष, सिंह, वृश्चिक, कुम्भ को स्थिर कहते हैं।
द्विस्वभाव- मिथुन, कन्या, धनु, मीन को द्विस्वभाव कहते हैं।
 
तत्व – अग्नि, पृथ्वी, वायु, जल 
अग्नि-मेष, सिंह एवं धनु अग्नि तत्त्व वाला होता है।
पृथ्वी-वृष, कन्या एवं मकर पृथ्वी तत्त्व वाला होता है।
वायु– मिथुन, तुला एवं कुम्भ वायु तत्त्व वाला होता है।
जल– कर्क, वृश्चिक एवं मीन जल तत्त्व वाला होता है।
 
प्रकृति  पित, वायु, मिश्रित, कफ 
पित– मेष, सिंह एवं धनु पित संज्ञक होता है।
वायु-वृष, कन्या एवं मकर वायु संज्ञक होता है।
मिश्रित– मिथुन, तुला एवं कुम्भ मिश्रित संज्ञक होता है।
कफ– कर्क, वृश्चिक एवं मीन कफ संज्ञक होता है।
 
वर्ण – क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र, ब्राह्मण वर्ण 
 
क्षत्रिय-मेष, सिंह, धनु (अधिकारी वर्ग)
वैश्य-वृष, कन्या, मकर (व्यापारी वर्ग)
शुद्र– मिथुन, तुला, कुम्भ (कर्मचारी वर्ग)
ब्राह्मण-कर्क, वृश्चिक, मीन (अध्यापक, प्रचारक, समाजसुधारक वर्ग)
 
दिशाएं
पूर्व – मेष, सिंह, धनु
दक्षिण – वृष, कन्या, मकर
पश्चिम – मिथुन, तुला, कुम्भ
उत्तर – कर्क, वृश्चिक, मीन
 
दिन बली और रात्रि बली राशियां
 
दिन बली- सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, कुम्भ, मीन
रात्रि बली- मेष, वृष, मिथुन, कर्क, धनु, मकर
 
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