जप के लिए माला
माला – जप के लिए माला का होना आवश्यक है। संख्या के बिना जप करने का कोई अर्थ नहीं निकलता, इसलिए एक सौ आठ चौवन अथवा सत्ताईस मनकों की मात्रा होनी चाहिए। हर मनके के बाद धागे में गाँठ दी गई हो । माला यदि किसी समय सुलभ नहीं हो तो कर माला से ही जप करना चाहिए। करमाला का नियम यह है कि तीसरी अंगुली के दूसरे पोर (अगुली की गांठ नहीं) से एक तीसरे पोर पर दो, चौथी अँगुली के अन्तिम (नीचे वाले) पोर पर तीन बीच वाले पर चार, ऊपर ही ऊपर वाले पर पाँच, तीसरी अंगुली के (जिस अंगुली से माला का प्रारम्भ किया था) ऊपर वाले पोर पर छह दूसरी अंगुली के ऊपर वाले पोर पर सात बीच वाले पर आठ इसी अँगुली के नीचे वाले पोर पर नौ तथा पहली अंगुली के नीचे वाले पोर पर दस माना गया है। दाहिने हाथ के अंगूठे से क्रमशः एक-एक स्थान पर अँगूठा रखकर जप करता जाय इन जपों की गिनती बाँयें हाथ की अंगुलियों पर इसी क्रम से करते जाने से एक सौ आठ संख्या पर एक माला हो जाती है।
वैष्णवो के लिए तुलसी की माला श्रेष्ठ मानी गई है वेसे तांत्रिक प्रयोगों में कमलगट्टे की और रुद्राक्ष की माला सर्व कार्य साधक मानी गई है। तान्त्रिक प्रयोगों में तथा पुष्टि कर्म में मूंगा, हीरा और मणियों की माला श्रेष्ठ है। शंख की माला परहित या स्वयं के कल्याण के लिए किए जाने वाले मन्त्रों में सदयः फलदायी रहती है। स्फटिक की माला आत्म ज्ञान के लिए और सरस्वती की उपासना के लिए अनुकूल पड़ती है। आकर्षण एवं वशीकरण में हाथी दांत की माला उपयुक्त रहती है।
जप करते समय माला को गोमुखी में रखकर या किसी कपड़े से ढककर रखना चाहिए। एक बार माला को पूरा करके उसे पलट लेना चाहिए तथा सुमेरू को (माला समाप्त होने पर) आँख एवं सिर से लगाकर दूसरी माला प्रारम्भ करनी चाहिए। मन्त्र जप करते समय माला को इतनी दूर रखना चाहिए कि वह श्वास की वायु को छू सके, प्रातःकाल किए जाने वाले जप में माता नाभि के पास मध्यान्ह में हृदय के समीप और सन्ध्या समय में नासिका के पास रखना ठीक रहता है।