गुरु महादशा दशा फल विचार
महादशा फल विचार से तात्पर्य यह है कि जातक के उपर जिस ग्रह की महादशा चल रही हो, उस ग्रह की कुण्डली में स्थितिवशात् उस जातक पर प्रभाव पड़ता है। यह ध्यातव्य होता है कि कुण्डली में ग्रह उच्च का है, नीच का है, स्वगृही है, मित्रगृही है, शत्रुगृही है, उस पर कितने शुभग्रह और पापग्रह की दृष्टि है तथा उस ग्रह की अवस्था क्या है आदि इत्यादि ऐसे अनेक तथ्य महादशा फल विचार के दौरान उपस्थित होते हैं।
परमोच्चगत गुरु महादशा फल कथन
जिस किसी की कुण्डली में गुरु यदि परमोच्च में अर्थात् कर्क राशि के 5 अंश पर स्थित हो, तो उसकी दशा के समय मनुष्य राज्य की प्राप्ति करता है। बहुत सुखी होता है। उसकी अच्छी कीर्ति होती है। मन उत्साहित होने से आनन्दानुभूति की अपेक्षा भी पूरा होता है। बहुत-से हाथी और घोड़ा भी उसके पास आता है। उसकी राज्याभिषेक भी होता है। अपने कुल में सर्वप्रमुख होता है।
उच्च (कर्क) राशि गत गुरु महादशा फल कथन
जिस किसी की कुण्डली में गुरु यदि अपनी उच्च राशि में स्थित हो, तो उसकी दशा के समय मनुष्य के भाग्य की अभिवृद्धि होती है। राजकीय सम्मान की प्राप्ति होती है। विदेश यात्रा भी करता है। महत्त्वपूर्ण अधिकार हस्तगत करने में सफल होता है। फिर भी वह दुःख के कारण भी खिन्न शरीर से युक्त होता है।
आरोही गुरुदशा फल कथन
जिस किसी की कुण्डली में गुरु यदि आरोही अर्थात् उच्चानुमुख होकर स्थित हो, तो उसकी दशा के समय मनुष्य अपना महत्व सिद्ध करता है। धन, भूमि आदि की प्राप्ति भी होती है। अपने बल पर वह संगीत कला में प्रवीणता, स्त्री, पुत्र आदि की प्राप्ति भी करता है। राजा से सम्मान भी प्राप्त करता है। वह यशस्वी व प्रतापी भी होता है।
वह किसी कस्बा या इलाके का राजा अथवा मण्डलाधिपति होता है। ब्राहमण और राजा से धन की प्राप्ति करता है। वह बुद्धिमान लावण्य-तेजयुक्त शरीर वाला और नीतिज्ञ होता है।
अवरोही गुरु दशा फल कथन
जिस किसी की कुण्डली में गुरु यदि अवरोही अर्थात् नीचानुमुख होकर स्थित होता है, तो उसकी दशा के समय मनुष्य कभी सुखी, कभी दुःखी होता है। कभी यशस्वी, विशेष कान्ति से युक्त और राजा होता है, तो कभी सामान्य जीवन जीता है। इस तरह मनुष्य चंचर स्थिति और दशा वाला हो जाता है।
परमनीचगत गुरु दशा फल कथन
जिस किसी की कुण्डली में गुरु यदि परमनीच में अर्थात् मकर राशि के अंश पर स्थित हो, तो उसकी दशा के समय मनुष्य का गृह भग्न अर्थात् गिर जाता है अथवा टूट-फूट से युक्त होता है। जहाँ भी वह रहता है, उस वातावरण में उपलब्ध लोगों के प्रति हृदय में विरोध रहता है। उसके कृषि की हानि होती है। दूसरों के पास सेवा करके जीविकार्जन करने को विवश होता है।
मूलत्रिकोण राशिस्थ गुरु दशाफल कथन
जिस किसी की कुण्डली में गुरु यदि अपनी मुलत्रिकोण राशि में हो, तो उसकी दशा के समय मनुष्य राज्य, धन, भूमि, पुत्र, पत्नि आदि का विशेष सौख्य पूर्ण करता है। वाहन का सुख भी प्राप्त होता हैं अपने पुरुषार्थ बल से धन की प्राप्ति करता है। यज्ञादि अनुष्ठान सम्पन्न होता है। उसमें बहुत से लोगों द्वारा उसके चरण पूजन किया जाता है।
स्वगृही गुरु दशा फल कथन
जिस किसी की कुण्डली में शुभग्रह से युक्त गुरु यदि अपनी राशि धनु या मीन में हो, तो उसकी दशा के समय मनुष्य राजा के वाहन का उपयोग करता है। राजा से ही कोमल वस्त्र भी मिलते हैं। दान से अथवा राजा से सम्मानित होने से धन प्राप्त करता है। यज्ञ आदि अनुष्ठान सम्पादन के मार्ग से विशेष रूप से धन अर्जित करता है।
जिस किसी की कुण्डली में पापग्रहदृष्ट गुरु यदि अपनी राशि धनु या मीन में पापग्रह से द्रष्ट हो तो उसकी दशा के समय मनुष्य को थोड़ा सुख प्राप्त रहता है। उसे धैर्य होता है। कुछ यश और कभी सुख भी मिलता है। थोड़ा धन भी दशा के अन्त में नष्ट होता है।
बृहस्पति (गुरु) ग्रह शान्ति के घरेलू टोटके कर आप विपरीत अवस्था को अनुकूल कर सकते है