गृह के आकार में परिवर्तन
जब मनुष्य अपने निवास के लिये ईंट, पत्थर आदि से गृह का निर्माण करता है, तब उस गृह में वास्तुशास्त्र के नियम लागू हो जाते हैं। वास्तुशास्त्र के नियम ईंट, पत्थर आदि की दीवार के भीतर ही लागू होते हैं। तारबंदी आदि के भीतर, जिस में से वायु आर-पार होती हो, वास्तुशास्त्र के नियम लागू नहीं होते ।
घरके किसी अंशको आगे नहीं बढ़ाना चाहिये। यदि बढ़ाना हो तो सभी दिशाओं में समान रूप से बढ़ाना चाहिये। घरको पूर्व दिशा में बढ़ाने पर मित्रों से वैर होता है। दक्षिण दिशा में बढ़ाने पर मृत्यु का तथा शत्रु का भय होता है। पश्चिम दिशा में बढ़ाने पर धनका नाश होता है।
उत्तर दिशा में बढ़ाने पर मानसिक सन्ताप की वृद्धि होती है। आग्नेय दिशा में बढ़ाने पर अग्रि से भय होता है।
नैर्ऋत्य दिशामें बढ़ानेपर शिशुओं का नाश होता है। वायव्य दिशामें बढ़ाने पर वात व्याधि उत्पन्न होती है। ईशान दिशा में बढ़ाने पर अन्न की हानि होती है।
यदि घर के किसी अंश को आगे बढ़ाना अनिवार्य हो तो पूर्व या उत्तरकी तरफ बढ़ा सकते हैं। क्योंकि इसमें थोड़ा दोष है।