किस पाये में बालक का जन्म हुआ
प्राय यह प्रथा प्रचलित है कि जन्म-नाम के साथ-साथ ही बालक किस पाये मे जन्मा है यह भी बता दिया जाता है।
जिस तरह पलग के चार पाये होते हैं – उसी प्रकार द्वादश भावो को ४ भागो में विभाजित कर दिया गया है।
(१) प्रथम भाव, छठा भाव, एकादश भाव इसका नाम रखा गया है सुवर्ण पाद (सोने का पाया)।
(२) द्वितीय भाव, पचम भाव, नवम भाव इसका नाम रखा गया है रजत पाद (चाँदी का पाया)।
(३) तृतीय भाव, सप्तम भाव, दशम भाव इसका नाम रखा गया है ताम्र पाद (ताम्बा का पाया)।
(४) चतुर्थ भाव, अष्टम भाव, द्वादश भाव (इसका नाम रखा गया है लौह पाद (लोहे का पाया)।
जन्म-लग्न से जिस भाव मे चन्द्रमा हो उस भाव के अनुसार ‘पाया‘ निर्धारित किया जाता है। प्रायः देहात के लोगो को यह याद नहीं रहता कि बालक का जन्म किस लग्न मे हुया था। नक्षत्र-चरण का ज्ञान नाम के प्रथमाक्षर से हो जाता है और नक्षत्रचरण से चन्द्रमा का ज्ञान हो जाता है । ‘पाये‘ से यह मालूम हो जाता है कि जन्म-कुण्डली मे चन्द्रमा किस भाव में है । इस प्रकार जन्मलग्न, जन्म चन्द्र तथा महादशा का स्थूल भभोग ज्ञात हो जाने से बिना जन्म-कुडली जाने भी काफी पता लग जाता है। यदि किसी को जन्म का वर्ष, मास यह भी मालूम हो तो नामाक्षर एव ‘पाए’ की मदद से पूर्ण कुडली तैयार हो सकती है। प्राय. ‘चॉदी का पाया’ सर्वश्रेष्ठ, उसके बाद ‘तांबे का पाया’ समझा जाता है। सुवर्ण का पाया तृतीय श्रेणी का तथा चतुर्थ ‘लौह पाद’ निकृष्ट समझा जाता है।