कुंडली में धनयोग | Dhanyog
यदि आप जानना चाहते है की आपकी कुंडली धनदायक है या नहीं तो आपको यह लेख जरुर पढना चाहिए।
प्रथम द्रष्टया आपकी कुंडली में धनयोग है की नहीं उसके लिए कुण्डली के बारह भावों को स्थूलरूप से दो भागों मे विभक्त किया जा सकता है, एक शुभ भाव, दूसरा अशुभ भाव। पहले अर्थात् शुभ विभाग में लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, पञ्चम, सप्तम, नवम, दशम एकादश भावों का समावेश है और दूसरे विभाग मे तृतीय, षष्ठ, अष्टम, तथा द्वादश भावो का समावेश होता है।
यह वर्गीकरण आर्थिक दृष्टिकोण से है अर्थात् लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, पञ्चम आदि भावों के स्वामी जब केन्द्र आदि शुभ स्थानो मे स्थित होकर शुभयुक्त अथवा शुभदृष्ट होंगे तो मनुष्य को धन, सुख, भाग्य आदि की प्राप्ति तथा इनका सवर्धन प्राप्त होगा और इस के विपरीत जब तृतीय, षष्ठ, अष्टम, द्वादश भावों के स्वामी केन्द्रादि मे बलवान् होंगे तो अभाव, दरिद्रता, रोग आदि की प्राप्ति अथवा वृद्धि होगी।
इसी प्रकार जब द्वितीय, चतुर्थ, पञ्चम भावो के स्वामी निर्बल हो तो धन आदि का नाश कहना चाहिये और षष्ठेश आदि ग्रह निर्बल हो तो धन की प्राप्ति कहनी चाहिये। एकादश भाव के स्वामी को महर्षि पाराशर ने पापी माना है। उनका इस ग्रह को पापी मानना स्वास्थ्य अर्थात् मारक दृष्टि से है न कि आर्थिक दृष्टि से। अत. एकादशेश भले ही किन्ही दशाओं मे रोग आदि देता हो, प्रायः बलवान् एकादशेश धनदायक ही सिद्ध होता है।