स्वप्न के प्रकार

स्वप्न के प्रकार

स्वप्न के प्रकार

जीवन में हम जो स्वप्न देखते है वो कई प्रकार के होते है

अतृप्त इच्छाओं का स्वप्न दर्शन

जागृत अवस्था में मन में कुछ भावनाएँ व इच्छाएँ उठती हैं, वे तृप्त नहीं हो पातीं और धीरे-धीरे प्रबल इच्छा या लालसा का रूप धारण कर लेती हैं, वे इच्छाएँ स्वप्न में पूर्ण होती दिखाई देती हैं। जैसे विवाह की तीव्र इच्छा वाले व्यक्ति का स्वप्न में विवाह होना। धन की तीव्र लालसा वाले व्यक्ति का स्वप्न में लाटरी निकलना या अन्य किसी माध्यम से यकायक धनवान हो जाना।

इस प्रकार अनेक अतृप्त इच्छाएँ स्वप्न में पूर्ण होती दिखाई देती हैं। भिखारी का राजा बनने का स्वप्न भी इसी कोटि का है। इसप्रकार के मधुर स्वप्न बीच में भंग हो जाने या असत्य निकल जाने पर उन व्यक्तियों को दुःख भी होता है।

आदेशात्मक स्वप्न प्रकार

कभी-कभी मनुष्य विषम परिस्थिति में फँस जाता है, समस्या का समाधान नहीं मिलता और वह रात-दिन उसी चिन्तन में लगा रहता है। उस दशा में स्वप्न में उसे उस समस्या का समाधान मिल जाता है। रोगी को अमुक औषधि लेने का आदेश, अर्थार्थी को अमुक व्यापार करना या अमुक स्थान पर जाने का आदेश। इन आदेशात्मक स्वप्नों के अनुसार कार्य करने पर लाभ भी होता है। ऐसे स्वप्न आदेश कई बार तो अदृश्य आवाज के रूप में ही आते हैं और कभी-कभी अपने पूर्वज, या इष्टदेव आदि भी स्वप्न में दृष्टिगोचर होते हैं।

भविष्यसूचक स्वप्न प्रकार

भविष्य में अपने जीवन में परिवार में समाज या राष्ट्र में घटित होने वाली घटनाओं के स्पष्ट या अस्पष्ट संकेत स्वप्न में मिल जाते हैं। जैसे स्वयं को या किसी अन्य को बीमार देखना, मृत देखना, दुर्घटना में फंसे देखना या प्रकृति, समाज या राज्य में नए परिवर्तन देखना ।

स्वप्न की अवस्था

गुरुओ ने स्वस्थ अवस्था वाले और अस्वस्थ अवस्था वाले, ये दो स्वप्न के प्रकार माने हैं। जब शरीर पूर्ण स्वस्थ होता है तो मन पूर्ण शांत रहता है, उस समय जो स्वप्न दीखते हैं वह स्वस्थ अवस्था वाला स्वप्न है। ऐसे स्वप्न बहुत ही कम आते हैं और प्रायः सत्य होते हैं। मन विक्षिप्त हो और शरीर अस्वस्थ हो उस समय देखे गये स्वप्न असत्य होते हैं । गुरुओ ने दोषसमुद्भव और देवसमुद्भव इस प्रकार स्वप्न के दो भेद भी किये हैं। वात, पित्त, कफ प्रभृति शारीरिक विकारों के कारण जो स्वप्न आते हैं वे दोषज हैं। इष्टदेव या मानसिक समाधि की स्थिति में जो स्वप्न आते हैं वे देवसमुद्भव हैं।

१. जो स्वप्न चित्त की स्वस्थ अवस्था वाले स्वप्न होते हैं। ये शांति तथा धातुओं (शारीरिक रस आदि) की समानता रहते हुए दीखते हैं वे स्वप्न बहुत कम दीखते हैं और प्रायः सत्य होते हैं।
२. मन की विक्षिप्तता तथा धातुओं की असमानता की अवस्था में दिखाई देने वाले स्वप्न प्रायः असत्य होते हैं। ये शारीरिक व मानसिक विकारजन्य ही होते हैं।

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