स्वप्न कब, क्यों आते हैं ?
स्वप्न के विषय में यही जिज्ञासा ढाई हजार वर्ष पूर्व जैन परंपरा के महान् ज्ञानी गणधर गौतम के हृदय में उठी और भगवान महावीर से उन्होंने समाधान पूछा –
भगवन् ! स्वप्न कब आता है ? क्या सोते हुए स्वप्न देखा जाता है, या जागते हुए? अथवा जागृत और सुप्त अवस्था में।
भगवान ने उत्तर दिया – गौतम ! न तो जीव सुप्त अवस्था में स्वप्न देखता है, न जागृत अवस्था में । किन्तु कुछ सुप्त और कुछ जागृत अर्थात् अर्धनिद्रित अवस्था में स्वप्न देखता है।
जागते हुए आँखें खुली रहती हैं, चेतना चंचल रहती है इसलिए स्वप्न आ नहीं सकता। गहरी नींद में जब स्नायु तन्तु पूर्ण शिथिल हो जाते हैं, अन्तर्मन ( अचेतन मन ) भी पूर्ण विश्राम करने लगता है, वह गति-हीन-सा हो जाता है उस दशा में भी स्वप्न नहीं आते, किन्तु जब मन कुछ थक जाता है, आँखें बन्द हो जाती हैं, चेतना की बाह्य प्रवृत्तियाँ रुक जाती हैं और अंतर्जगत भाव-लोक में उसकी गति होती रहती है, वह अवस्था – जिसे अर्धनिद्रित अवस्था कहा जाता है उसी समय में स्वप्न आते हैं ।
प्रायः देखा जाता है कि स्वस्थ मनुष्य जो गहरी नींद सोता है, स्वप्न बहुत कम देखता है । अस्वस्थ मनुष्य चाहे शारीरिक दृष्टि से अस्वस्थ हो या मानसिक दृष्टि से वही अधिक और बार-बार स्वप्न देखता है और उसके स्वप्न प्रायः निरर्थक ही होते हैं।
प्राचीन आयुर्वेद के अनुसार जब इन्द्रियाँ अपने विषय से निवृत्त होकर शांत हो जाती हैं, अर्थात् इन्द्रियों की गति बन्द हो जाती है, और मन उन विषयों में शब्द-रूप-रस- गन्ध-स्पर्श में लगा रहता है, उस समय मनुष्य स्वप्न देखता है-
सर्वेन्द्रियव्यूपरतो मनोऽनुपरतं यदा ।
विषयेभ्यस्तवा स्वप्नं नानारूपं प्रपश्यति ॥
शरीर व मन की इस दशा को ही आगमों की भाषा में यों बताया है। सुप्तं जागरमाणे सुविणं पासई– सुप्त-जागृत अवस्था में स्वप्न देखता है।