शुक्र की महादशा – अन्तर्दशा का फल
(१) शुक्र की महादशा में शुक्र की अन्तर्दशा का फल:
वस्त्र, आभूषण, सवारी, चन्दन आदि ख शब्दार पदार्थ की प्राप्ति हो, स्त्री भोग, सुख और सम्पत्ति मिले। जातक के शरीर में कान्ति की वृद्धि हो। राजा से बहुत धन प्राप्त हो।
(२) शुक्र की महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा का फल:
नेत्र, कुक्षि, कपोल इन स्थानों में बीमारी हो। राजा से भय प्राप्त हो अर्थात् राजा की तरफ से कोई टन्टा खड़ा हो। गुरुजन, कुटुम्ब के आदमी अथवा बन्धुओं को पीड़ा हो । इस अन्तर्दशा का फल उत्तम नहीं है।
(३) शुक्र की महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा का फल:
नख (नाखून), सिर और दांतों में चोट लगे या पीड़ा हो। वायु और पित्त की बीमारियां हो, धन का नाश हो, संग्रहणी, यक्ष्मा अथवा गुल्म रोग से पीड़ा हो। (गुल्म पेट के अन्दर तिल्ली को कहते हैं।
(४) शुक्र की महादशा में मगल की अन्तर्दशा का फल:
रुधिरदोष तथा पित्त के कारण बीमारियां हो । सोना, तांबा और भूमि का संग्रह हो। जिस कार्य में मनुष्य लगा है वह कार्य छोड़ना पड़े। किसी युवती से अनुचित सम्बन्ध हो।
(५) शुक्र की महादशा में राहु की अन्तर्दशा का फल:
धन की प्राप्ति, पुत्र की उत्पत्ति आदि शुभ फल होते हैं। जातक उत्तम वाणी बोलता है, उसके कुल के लोग उसका आदर करते हैं और जातक अपने पात्रुओं पर विजयी होता है । हो सकता है कि जातक के शत्रु को जेल भी जाना पड़े। किन्तु जातक को स्वयं को भी कुछ कष्ट होता है । जातक को भी विष, अग्नि और चोर से पीड़ा हो।
(६) शुक्र की महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा का फल:
नाना प्रकार के धर्म के कार्य बन पढ़ें। देवताओं का पूजन हो । अपने पुत्र और स्त्रियों से समागम रहे और राज्य में नाना प्रकार के सुख मिलें अर्थात् उत्तम पद और अधिकार के कारण जातक को सुख मिले।
(७) शुक्र की महादशा में शनि की अन्तर्दशा का फल:
सरकार से, सेना के लोगों से और नागरिकों से सम्मान प्राप्त हो। उत्तम स्त्री की प्राप्ति हो। नाना प्रकार का धनागम हो और सुख के अन्य उपकरण या साधनों की प्राप्ति हो।
(८) शुक्र की महादशा में बुध की अन्तर्दशा का फल:
पुत्र सुख हो, सम्पत्तियों का समागम हो; यश, प्रभुता और सुख की प्राप्ति हो। जातक के शत्रुओं का नाश हो किन्तु जातक का स्वयं का वात, पित्त, कफ इन त्रिदोषों में से किसी एक या अधिक दोषों से स्वास्थ्य बिगड़े।
(९) शुक्र की महादशा में केतु की अन्तर्दशा का फल :
अग्नि से भय हो। शरीर के किसी अंग में पीड़ा हो। सम्पत्ति नष्ट हो, सुख की कमी रहे और वेश्याओं की संगति रहे। पुत्र से विरह हो।