गुरु की महादशा – अन्तर्दशा का फल
१. गुरु की महादशा में गुरु की अन्तर्दशा का फल :
सौभाग्य की वृद्धि हो, कान्ति बड़े। सब ओर से मान-सम्मान मिले। पुत्र प्राप्ति हो, जातक के गुणों का उदय और राजदरबार में इज्जत हो। आचार्य और साधु-जनों से संयोग हो। मन की आकांक्षायें पूर्ण हों।
२. गुरु की महादशा में शनि की अन्तर्दशा का फल :
वेश्याओं की संगति हो, शराब पीना आदि दोषों की वृद्धि हो। सांसारिक स्थिति में उन्नति हो, मुख प्राप्ति हो। किन्तु जातफ के कुटुम्ब और पशुओं को पीड़ा हो। धन वहन अधिक खर्च हो। जातक के हृदय में सदैव भय बना रहे। आँखों में रोग हो और पुत्र को पीड़ा।
३. गुरु की महादशा में बुध को अन्तर्दशा का फल :
इस सम्बन्ध में दो मत हैं। एक मत यह है कि बृहस्पति में बुध की अन्तर्दशा अशुभ फल दिखाती है। स्त्रियों से मंग हो, शराब पीने का घोर दुव्सयन हो और जातक जुआ खेले। वात, पित्त, कफ तीनों दोषों के कारण जातक बीमार पड़े।
दूसरा मत यह है कि बृहस्पति की महादशा में बुध की अन्तर्दशा केवल शुभ फल देने वाली होती है। और जातक देवताओं और ब्राह्मणों का पूजन करता है। पुत्र, धन और सुख की प्राप्ति होती है।
४. गुरु की महादशा में केतु की अन्तर्दशा का फल :
शस्त्र के वण होते हैं। नौकरों से विरोध बढ़ता है। चित में व्यथा रहती है,जातक के स्त्री और पुत्रों को कष्ट हो। गुरुजनों अथवा प्रियजनों से वियोग हो और जातक के स्वयं के प्राण जाने का भी कष्ट हो। केतु की महादशा अन्तर्दशा फल जाने
५. गुरु की महादशा में शुक्र की अन्तर्दशा का फल :
अनेक प्रकार के धन, पशु, अन्न, वस्त्र, स्त्री, पुत्र, भोजन, पीने की वस्तएँ, आभषण, शयन-सख, घर में काम में आने वाली वस्तुएँ प्राप्त हों और इन सबसे सुख हो। जातक देवताओं और ब्राह्मणों के अर्चन में तत्पर रहे।
६. गुरु की महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा का फल :
शत्रु पर विजय प्राप्त हो, राजा से मान मिले, यश वृद्धि हो, लाभ हो, पालकी और घोड़े की सवारी मिले। जातक के हृदय में पुरुषार्थ बढ़े और जातक किसी बड़े शहर में रहता हुआ समस्त सम्पत्ति का उपभोग करे। सूर्य ग्रह शान्ति के घरेलू टोटके
७. गुरु की महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा का फल :
बहुत सी स्त्रियों की प्राप्ति हो, धन-लाभ हो, देवता और ब्राह्मणों की पूजा हो, जातक का यश बढ़े, कृषि से लाभ हो, माल के खरीदफरोख्त में भी नफा हो और शत्रुओं का नाम हो।
८. गुरु को महादशा में मंगल की अन्तर्दशा का फल :
इस समय जातक के कार्य से बन्धुओं को सन्ताप होता है और जातक को शत्रुओं के संग से लाभ होता है। उत्तम भूमि की प्राप्ति हो, जातक सत्कर्म करे और उसके प्रभाव में वृद्धि हो। जातक के किसी गुरुजन को चोट लगे या उसके स्वयं के नेत्रों में कष्ट हो।
९. गुरु की महादशा में राहु की अन्तर्दशा का फल :
बन्धओं को संताप हो या बन्धुओं से संताप हो। मस्तिष्क में घोर दुश्चिन्तायें और व्यथायें रहें। बीमारी हो, चोर से भय हो। किसी गुरुजन को बीमारी हो या जातक को स्वयं को उदर-विकार हो। राजा मे पीड़ा प्राप्त हो। शत्रुओं से कष्ट वृद्धि हो, धन का नाश हो। बृहस्पति देवताओं के गुरु हैं। गह देवताओं का शत्र है, इसलिये बृहस्पति में राहु का अशुभ फल होना स्वाभाविक ही है। अशुभ राहु ग्रह शान्ति के घरेलू टोटके