राहु-केतु सहित सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि ये ९ ग्रह हैं। मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ, मीन ये १२ राशियाँ है।
जब द्वादशेश धन-स्थान अथवा अष्टम स्थान में हो तो व्यक्ति विष्णु-भक्त, धर्मात्मा, प्रियवादी तथा सब अच्छे गुणों से युक्त होता है।
तिथियों को मुख्य रूप से पांच भागों में बांटा गया है। नंदा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा। पहली तिथि यानी प्रतिपदा होगी नंदा, दूसरी भद्रा, तीसरी जया, चोथी रिक्ता और पांचवी पूर्णा।
मेष, तुला, धन और मकर इन चार लग्नों के अतिरिक्त यदि कोई लग्न हो तो अष्टमेश अशुभ फल ही करता है। ऐसा पराशर का मत है। ग्रह अपनी-अपनी दशा में अपना फल करते हैं।
केन्द्रेश और त्रिकोणेश का आपस मे सम्बन्ध होना ‘योग’ कहलाता है । ‘राज’ शब्द ऐश्वर्य-बोधक है इस कारण कुण्डली में कोई भी योग हो, यदि उसका फल शुभ, धनकारक, समृद्धि या उत्कर्ष करने वाला होता है तो उसे ज्योतिषियो की भाषा में राजयोग-Rajyog कहते हैं।
ग्रह के अस्त अवस्था तत्व एवं प्रभाव संबंधी विशेष जानकारी
जिसका पंचमेश नवम या दशम स्थान में हो, उसका पुत्र राजा के समान होता है अथवा ग्रंथकर्ता, प्रख्यात और कुलदीपक होता है।
कृषि भूमि का आकार चौकोर हो तथा उत्तर पूर्व या ईशान की ओर उसका उतार हो तो श्रेष्ठ हैं। यदी चौंकोर न हो तो चौकोर करवाए।
कुंडली में १२ कोष्टक या घर को भाव कहते है। 1,4,7,10 केन्द्र, 5,9 त्रिकोण, 2,5,8,11 पणफर, 3,6,9,12 आपोक्लिम, 6,8,12 त्रिक, 3,6,10,11 उपचय, 1,2,4,5,7,8,9,12 कहलाते है
राहु का दृष्टि फल – पाँचवें भाव को राहु पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो भाग्यशाली, धनी, व्यवहारकुशल और सन्तानसुखी होता है