यंत्र-विद्या

यंत्र-विद्या

यंत्रों का केन्द्र बिन्दु सूर्य है और इसका मूल है शक्ति । इनके प्रयोग से व्यक्ति के हृदय में अद्भुत ज्ञान व अद्भुत तेज का उद्भव होता है। भारत में यंत्रों का विशिष्ट स्थान है। सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी इनकी सिद्धि के माध्यम से उच्चस्तरीय ज्ञान एवं लाभ प्राप्त कर सकता है। यंत्रों की पूजा व लेखन का भी एक विशेष प्रकार है। सामान्यतया निम्नलिखित विधि-विधान को ध्यान में रखना आवश्यक है :-

१. स्थान पवित्र व एकान्त होना चाहिए।
२. स्नान आदि करके धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनने चाहिए।
३. समय – रवि पुष्य, रवि हस्त, रवि मूल, गुरु पुष्य नक्षत्र, दीपावली, होली, नवरात्र, विजयदशमी कृष्णपक्ष की चतुर्दशी, तीर्थकरों के जन्म दिन, चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, अपना चन्द्र स्वर चलता हो तब या अच्छा मुहूर्त निकलवाकर लिखना चाहिए – साधना प्रारंभ करनी चाहिए।
४. लेखनी – अर्थात् कलम चमेली, जूही, अनार, तुलसी आदि वृक्षों की डाली की या चांदी व स्वर्ण निर्मित होनी चाहिए।
५. स्याही – लाल, काली केसर, हिंगलु, कुकुम, पंचगंध, यक्षकर्दम या अष्ट गध की होनी चाहिए।
६. धूप – लोबान, गुग्गुल, नवरंगी या दशांग धूप का प्रयोग करना चाहिए।
७. पत्र – स्वर्ण, रजत या ताम्र पत्र काष्ठ अथवा तालपत्र, भोजपत्र या उत्तम कोटि का कागज व्यवहार में लाना चाहिए।
. ताबीज पानी मादलिया – स्वर्ण रजत या ताम्र का ही प्रायः प्रयोग में आता है। बनाते समय लोहे का स्पर्श नहीं होना चाहिए। तावीज का मुंह लाख से बन्द करना चाहिए।
९. ताबीज गले में धारण करना चाहिए। वह अधिक फलप्रद होता है। वेसा न करे तो भुजा पर धारण करना चाहिए। जेब में भी रखा जा सकता है।
१०. प्रभु प्रतिमा या चित्र के सामने बैठकर लिखना चाहिए।
११. साधना करने के बाद यंत्र को एक कांसे की थाली में रख कर फल, फूल व नेवेद्य चढ़ा देना चाहिए।
१२. पूजा चन्दन, पुष्प, धूप, दीप, फल व नैवेद्य आदि से करनी चाहिए।
१३. जितने अधिक यंत्र लिखे जायेंगे, उतनी ही यंत्रों में शक्ति बढ़ेगी। जितने यंत्र लिखे, उनमें से एक को रखकर बाकी सभी को गेहूं के आटे की गोलियों में भरकर समुद्र या नदी में डाल देना चाहिए।

पंचगन्ध स्याही – केसर, चन्दन, कस्तूरी, कपूर व गोरोचन से बनती है।
यक्षकर्दम स्याही – केसर, चन्दन, कस्तूरी, कपूर व अगर से बनती है।
यक्षकर्दम स्याही का दूसरा प्रकार – चन्दन, केसर, अगर, कस्तूरी, गोरोचन, हिंगलु रक्तचन्दन, अम्बर, सुनहरी बर्फ, मरचककोल (चिरच), बरास (कपूर), कंकोभू से बनती है।
अष्टगन्ध स्याही – चन्दन, रक्तचन्दन, केसर, कस्तूरी, गोरोचन, सिन्दूर, अगर, तगर से बनती है। (कल्प संग्रह में इसका उल्लेख है )|
अष्टगन्ध स्याही ( दूसरा प्रकार ) – चन्दन, केसर, कस्तूरी, अगर, तगर, गोरोचन, अंकोल व भीमसेनी कपूर से बनती है।
नवरंगी धूप – अगर, लोबान, बाह्मी, नखला, राल, छड़छड़ीला, चन्दन, गिरी व गुग्गुल। गुग्गुल सब वस्तुओं से दुना होता है। नखला घृत में सेका जाता है।
दशांग धूप – शिलारस, गुग्गुल, चन्दन, जटामासी, लोबान, राल, उसीर, नखला भीमसेनी कपुर तथा कस्तूरी से बनता है।

यंत्र किस पर लिखा जाय – स्वर्ण, रजत या ताम्र पत्र काष्ठ अथवा तालपत्र, भोजपत्र या उत्तम कोटि का कागज

 

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