मन्त्रों के विभिन्न स्वरूप (आग्नेय मन्त्र और सौम्य मन्त्र)

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मन्त्रों के विभिन्न स्वरूप (आग्नेय मन्त्र और सौम्य मन्त्र)

मन्त्र का स्वरूप ज्ञान प्राप्त करने के लिए उनके भेद अथवा प्रकारों का ज्ञान भी आवश्यक है। फिर भी वस्तु के प्रकार एकाधिक रूप में प्राप्त होने का कारण उसकी अपेक्षा विशेष से उत्पन्न दृष्टि होता है। इस प्रकार की दृष्टियां अनेक होने से वस्तु के प्रकारों में भी अनेकता का होन स्वाभाविक है।

मन्त्र-व्याकरण में मन्त्र-समुदाय के दो प्रकार दिखाये गये हैं- आग्नेय मन्त्र और सौम्य मन्त्र। इनमें जो मन्त्र पृथ्वी, अग्नि और आकाश तत्व से युक्त होते हैं वे ‘आग्नेय‘ कहलाते हैं तथा जल और वायु तत्त्व से युक्त होते हैं वे ‘सौम्य‘ कहलाते हैं।

आग्नेय मन्त्रों के साथ ‘नमः’ अन्त में लग जाने पर वे सौम्य बनते हैं और सौम्य मन्त्रों के साथ ‘फट्’ अन्त में लग जाने पर वे आग्नेय बन जाते हैं। अन्य तन्त्रों में इन्हीं को सौर और सौम्य नाम से सम्बोधित किया है और वहीं स्पष्ट किया है कि सौर मन्त्र पुरुष- देवता के तथा सौम्य मन्त्र स्त्री- देवता के होते हैं। किन्तु यह सभी मन्त्रों के लिए निश्चित नियम न होकर एकान्तिक नियम कहा जा सकता है, क्योंकि अनेक मन्त्र इसके अपवाद स्वरूप भी प्राप्त होते हैं।

आग्नेय अथवा सौर मन्त्र उग्र कर्म के लिए प्रशस्त माने गये हैं- अर्थात् मारण उच्चाटन विद्वेषण जैसे कर्म के लिए उचित माने गये हैं । सौम्य मन्त्र शान्तिक कर्म के लिए उत्तम सिद्ध होते हैं।

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