मंत्र जप के प्रकार
मन्त्राक्षरों की बार बार आवृत्ति करना, पुनरावृत्ति करना, रटना जप कहलाता है। इस प्रकार ‘जप’ स्मरण का एक विशिष्ट विस्तृत स्वरूप है। परन्तु यह अपनी विशेषता रखता है। मन्त्रविदों ने इसे निम्न प्रकार कहा है।
ज करो जन्मविच्छेदः प करो पाप नाशकः ।
तस्माज्जप इति प्रोक्तो जन्म पाप विनाशकः ।
अर्थात् ‘ज’ कार जन्म का विच्छेद करने वाला है और ‘प’ कार पाप नाशक कहा है अतः जप यथाविधि हो तो सिद्धि के लिए कोई शंका नहीं रहती। मंत्र जाप के प्रकार कई हो सकते है पर आचार्यों ने कहा है कि जप तीन प्रकार से किया जा सकता है-
१. मानस जप – जिस जप में मन्त्र के पद, शब्द और अर्थ का मन द्वारा बार-बार चिन्तन होता है उसे मानस जप कहते हैं। यह सर्वश्रेष्ठ प्रकार की जप है।
२. उपांशु जप – जिस जप में केवल जिव्हा हिलती है या इतने हलके स्वर से जप होता है जिसे कोई सुन न सके, मात्र ओंठ ही हिलते नजर आयें, तो उसे उपांश जप कहते हैं यह मध्यम प्रकार की जप है।
३. वाचिक जप – जप करने वाले ऊंचे-नीचे स्वर से स्पष्ट या अस्पष्ट मन्त्र बोलकर जप करता है। उसे वाचिक जप कहते हैं। लेकिन यह जघन्य प्रकार की जप है। मन्त्रविशारद वाचिक जप से एक गुना फल, उपांशु जप से सौ गुना फल तथा मानस जप से हजार गुना फल बताते हैं।
त्रियोग जाप का फल
मानसिक जाप – कार्य सिद्धि के लिये मन में करना ।
वाचनिक जाप – पुत्र प्राप्ति के लिये उच्च स्वर से जाप करना ।
कायिक जाप – धन प्राप्ति के लिये, बिना बोले मंत्र पढ़ना जिससे ओंठ हिलते रहें।
जाप (Mantra Jap) का फल कब नहीं मिलता
जो साधक जप करते समय प्रमादी होकर ऊंघते हैं, नींद का झोंका लेते हैं अथवा बार-बार उबासी लेते हैं या किसी प्रकार का प्रमाद करते हैं उनका जाप करना न करने के समान है और जो कोई अपने हृदय में उद्वेग व चंचलता रखता हुआ जप करता है अथवा माला के मेरुदंड को उल्लंघन कर जप करता है अथवा जो उंगली के नख के अग्रभाग से जप करता है उसका वह सब जप निष्फल होता है।
जाप करने का विधान
मोक्ष प्राप्ति के लिए अंगूठे से जपना चाहिये, औपचारिक कार्यों में तर्जनी से, धन और सुख की प्राप्ति के लिये मध्यमा से, शान्ति कार्यों के लिये अनामिका ऊंगली से, आव्हानन के लिये कनिष्ठा से शत्रु नाश के लिये तर्जनी से, धन संपदा के लिये मध्यमा से, सर्व कार्य की सिद्धि के लिये कनिष्ठा से जाप करना चाहिये एवं अंगूठे पर माला रखना चाहिये ।मंत्र जाप विधि क्रम जानने के लिए पढ़े