कुंडली के भाव (घर)
मनुष्य की जन्म कुंडली में बारह खाने, घर अथवा भाव होते है। तनु, धन, सहज, सुख, पुत्र, रिपु, जाया, आयु, धर्म, कर्म, लाभ, व्यय हर भाव कुछ कहता है।
कुंडली का प्रथम भाव (तनु)
इस भाव के द्वारा व्यक्ति के स्वरूप, जाति, आयु, विवेक, मस्तिष्क, शील, चिन्ह, दुख-सुख तथा आकृति के संबध मे विचार किया जाता है। इस भाव का कारक सूर्य है। इसमे मिथुन, कन्या, तुला और कुंभ राशियों मे से कोई राशि हो, तो उसे बलवान माना जाता है।
कुंडली का दूसरा भाव (धन)
इस भाव के द्वारा स्वर, सौंदर्य, आंख, नाक, कान, गायन, प्रेम, कुल, मित्र, सत्यवादिता, सुखोपभोग, बंधन, क्रय-विक्रय, स्वर्ण, चांदी, मणि, रत्न, व संचित पुजा के संबध में विचार किया जाता है। इस भाव का कारक गुरू है।
कुंडली का तीसरा भाव (सहज)
इस भाव के द्वारा पराक्रम, कर्म, भ्रातृ, साहस, धैर्य, शौर्य, आयुष्य, सहोद्र, नौकर-चाकर, गायन, योग, क्षय, श्वास, कास तथा दमा आदि रोगो का विचार किया जाता है। इस भाव का कारक मंगल है।
कुंडली का चतुर्थ भाव (सुख)
इस भाव के द्वारा सुख, ग्रह, ग्राम, मकान, सम्पत्ति, बाग, माता-पिता का सुख, अंतःकरण की स्थिति, दया, उदारता, छल, कपट, निधि, यकृत और पेटादि के संबध में विचार किया जाता है। इस भाव का कारक चंद्र है।
कुंडली का पंचम भाव (पुत्र)
इस भाव के द्वारा बुद्धि, विद्या, विनय, निति, देव भक्ति, संतान, प्रबंध-व्यवस्था, मामा का सुख, धन प्राप्ति के उपाय, धन की प्राप्ति, नौकरी छूटना, हाथ का यश, मूत्र-पिण्ड, वस्ति एवं गर्भाश्य आदि के संबध मे विचार किया जाता है। इस भाव कारक गुरू है।
कुंडली का पष्ठ भाव (रिपु)
इस भाव के द्वारा शत्रु, क्षत, वैरी, रोग, नष्ट, त्रिक, उपचय, चिंता, संदेह, जागीर, मामा की स्थिति, यश, गुदास्थान, पीडा आदि के संबंध में विचार किया जाता है। इस भाव का कारक मंगल है।
कुंडली का सप्तम भाव (जाया)
इस भाव के द्वारा स्त्री, मृत्यु, कामेच्छा, कामचिंता, सहवास, विवाह, स्वास्थ्य, जननेन्द्रिय, अंग-विभाग व्यवसाय, झगंडा-झंझट, तथा बवासीर आदि का विचार किया जाता है इस भाव का कारक शुक्र है।
कुंडली का अष्टम भाव (आयु)
इस भाव के द्वारा आयु, जीवन-मृत्यु, व्याधि, मानसिक चितांए, झूठ, पुरातत्व, समुद्री-यात्रा, संकट, लिंग, योनि तथा अंडकोष के रोगादि के संबंध में विचार किया जाता है। इस भाव का कारक शनि है।
कुंडली का नवम भाव (धर्म)
इस भाव के द्वारा तप, शीतल, धर्म, विद्या, प्रवास, तीर्थयात्रा, दान, मानसिक-वृत्ति, भाग्योद्य तथा पिता का सुख आदि के संबंध में विचार किया जाता है। इस भाव का कारक गुरू है।
कुंडली का दशम भाव (कर्म)
इस भाव के द्वारा अधिकार, ऐश्वर्य-भोग, यश-प्राप्ति, नेतृत्व, प्रभुता, मान-प्रतिष्ठा, राज्य, नौकरी, व्यवसाय तथा पिता के संबंध में विचार किया जाता है। इस भाव का कारक बुध है।
कुंडली का एकादश भाव (लाभ)
इस भाव के द्वारा संपत्ति, ऐश्वर्य, मांगलिक-कार्य, वाहन, रत्न आदि के संबंध में विचार किया जाता है। इस भाव का कारक गुरू है।
कुंडली का द्वादश भाव (व्यय)
इस भाव के द्वारा हानि, व्यय, दंड, व्यसन, रोग, दान आदि का विचार किया जाता है। इस भाव का कारक शनि है।
अन्य ज्योतिष विद्वानों ने मत के अन्य कारक भी माने हैं जैसे- प्रथम भाव का कारक सूर्य के साथ चन्द्रमा भी है। द्वितीय भाव का कारक बुध वर्णा पटुता के कारण, तृतीय भाव का शनि-आयु कारक, चतुर्थ भाव का शुक्र-वाहन का कारक, षष्ठ भाव का बुध- मामा का कारक, दशम भाव का मंगल- पराक्रम, तकनीकी शिक्षा, प्रतियोगता का कारक तथा द्वादश भाव का शुक्र सम्भोग का कारक ग्रह भी माना है।
१२ भाव के स्थानों का परिचय
केंद्र १-४-७-१० पणफर २-५-८-११ आपोक्लिम ३-६-९-१२, त्रिकोण ५-९, उपचय ३-६-१०-११, चतुरस्र ४॥८, मारक २७, नेत्रत्रिक संज्ञक ६-८-१२ स्थान हैं।
लग्न से तीसरा, छठा, दसर्वां, ग्यारहवां–यह चार जगह उपचय कहलाती हैं।
लग्न से १, २, ४, ५, ७, ८, ९, १२ अनुपचय स्थान कहलाते हैं।