पानी का उपयोग कैसे करे?
पानी को छानकर ही प्रयोग करना चाहिए। अगर पानी गंदा हो तो, पीने से पहले उसको किसी भी विधि द्वारा फिल्टर करना चाहिए। कठोर पानी पीने योग्य नहीं होता। उबला हुआ पानी स्वास्थ्य के लिये लाभप्रद होता है।
पानी को घुट घुट, धीरे धीरे चन्द्र स्वर में पानी चाहिये और शरीर के तापक्रम पर हो जाने के पश्चात् पानी को निगलना चाहिए।
प्रत्येक भोजन के ढेड़ से दो घंटे पहले पर्याप्त मात्रा में जलपान करना उत्तम रहता है। ऐसा करने से पेट के अन्दर अपचित आहार जो सड़ता रहता है, पानी में पूर्णतया घुल जाता हैं। पाचन संस्थान एवं पाचक रस ग्रन्थियां सबल एवम स्वस्थ बनती हैं। इसी प्रकार भोजन के दो घंटे पश्चात् भी पर्याप्त मात्रा में जितनी आवश्यकता हो पानी पीना चाहिये, जिससे शरीर में जल की कमी न हो। पर्याप्त मात्रा में जल पीने से पित्ताशय व गुर्दे की पथरी-तथा जोड़ों की सूजन व दर्द ठीक होते हैं। रक्त में मिश्रित विकार धुलकर बाहर निकल जाते हैं।
१. जल से शरीर के अन्दर की गर्मी एवं गंदगी दूर होती है।
२. खड़े-खड़े पानी पीने से गैस, वात विकार, घुटने तथा अन्य जोड़ों का दर्द, दृष्टि दोष, श्रवण विकार होते हैं।
३. थकावट होने अथवा प्यास लगने पर पानी धीरे-धीरे घुट घुट पीना लाभप्रद होता है।
४. भय, क्रोध, मूर्छा, शोकं व चोट लग जाने के समयं अन्तःश्रावी ग्रन्थियों द्वारा छोड़े गये हानिकारक श्रावों के प्रभाव को कम करने के लिय पानी पीना लाभप्रद होता है।
५. लू तथा गर्मी लग जाने पर ठंडा पानी व सर्दी लग जाने पर गर्म पानी पीना चाहिये, उसमें शरीर को राहत मिलती है। पानी पीकर गर्मी में बाहर निकलने पर लू लगने की संभावना नहीं रहती।
६. उच्च अम्लता में भी आधिक पानी पीना चाहिए, क्योंकि यह पेट तथा पाचन नली की अन्दर की कोमल सतह को जलन से बचाता है।
७. दिन में तीन घंटे के अन्तर पर पानी अवश्य पीना चाहिए, क्योंकि इससे अन्तःश्रावी ग्रन्थियों का श्राव पर्याप्त मात्रा में निकलता रहता है।
८. उपवास के समय पाचन अंगों को भोजन पचाने का कार्य नहीं करना पड़ता। अतः वे शरीर में जमे विजातीय तत्त्वों को आसानी से निकालना प्रारम्भ कर देते हैं। अधिक पानी पीने से उन तत्वों के निष्कासन में मदद मिलती है।
९. पेट में भारीपन, खट्टी डकारें आना, पेट में जलन तथा अपच आदि का कारण पाचन तंत्र में खराबी होता है। अतः ऐसे समय गरम पानी पीने से पाचन सुधरता है और उपरोक्त रोगों में राहत मिलती है।
१०. डायरिया, हैजा व उल्टी, दस्त के समय उबाल कर ठंडा किया हुआ पानी पीना चाहिये, क्योंकि यह पानी कीटाणु रहित हो जाता है तथा दस्त के कारण शरीर में होने वाली पानी की कमी को रोकता है।
११. गले और नाक में गर्म जल की वाष्प के बफारे लेने से जुकाम और गले संबंधी रोगों में आराम मिलता है।
१२. पीने वाली अधिकांश दवाईयों में पानी का उपयोग किया जाता हैं।
१३. अधिकांश ठोस दवाईयां भी चाहे वे एलोपेथिक की टेबलेट अथवा आयुर्वेद या अन्य चिकित्सा पद्धति से संबंधित मुंह में लेने वाली दवाईयों को पानी के माध्यम से सरलता पूर्वक निगला जा सकता हैं।
१४. त्रिफला के पानी से आंखे धोने पर आंखों की रोशनी सुधरती है। रात भर दाणा मेथी में भिगोया पानी पीने से पाचन संबंधी रोग ठीक होते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा में शारीरिक शुद्धि के लिये पानी का अलग अलग ढंग से उपयोग किया जाता है।
१५. विशेष परिस्थितियों के अतिरिक्त स्नान ताजा पानी से ही करना चाहिये। ताजा पानी रक्त संचार को बढ़ाता है। जिससे शरीर मे स्फुर्ति और शक्ति बढ़ती है। जबकि गर्म पानी से स्नान करने पर आलसय एवं शिथिलता बढ़ती है।