तुला लग्न और आयुष्य योग
1. तुला लग्न वालों के लिए मंगल द्वितीयेश होकर भी मारक का कार्य नहीं करेगा। गुरु षष्टेश होने से अशुभ फलदायक है। सूर्य व शुक्र पापी हैं। मंगल साहचार्य से मारक का कार्य करेगा। आयुष्य प्रदाता ग्रह शुक्र है।
2. तुला लग्न वालों की मृत्यु कफ जनित रोगों से.मत्य प्राय जन्म स्थल एवं घर में होती है।
3. तुला लग्न वालों की औसत आयु 85 वर्ष मानी गई है। जन्म उपरान्त 4, 8 माह और 1, 2, 4, 8, 12,16, 20, 25, 27, 31, 40, 51, 55, 59, 60, 61, 65, 69, 72 और 76 वर्ष शारीरिक कष्ट या अल्प मृत्यु के कहे गए हैं।
4. तुला लग्न में कन्या का सूर्य द्वादश में हो तो ऐसा जातक सौ वर्ष जीता है।
5. तुला लग्न में शुक्र हो तो जातक दीर्घ देह वाला एवं उत्तम आयु को भोगने बाला प्राणी होता है।
6. तुला लग्न में बुध, बृहस्पति व शुक्र छठे हो तथा मंगल आठवें या नीच का शनि सातवें हो अन्य ग्रह चंद्रमा के पीछे हो तो व्यक्ति कुबड़ा होता है।
7. तुला लग्न में शनि हो, शुक्र या बृहस्पति केन्द्र में हो, सभी पाप ग्रह तीसरे छठे या ग्यारहवें स्थान में हो तो जातक 120 वर्ष की परमायु को भोगता है।
8. तुला लग्न में शनि शुक्र के साथ चौथे स्थान मकर राशि में हो तो जातक सौ वर्ष से ऊपर स्वस्थ दीर्घायु को भोगता है।
9. तुला लग्न में शुक्र गुरु एवं अन्य शुभग्रहों से दृष्ट हो तो जातक सौ वर्ष की स्वस्थ दीर्घायु को प्राप्त करता है।
10, तुला लग्न में चंद्रमा छठे मीन का हो. अष्टम स्थान में कोई पाप ग्रह न हो तो तथा सभी शुभगह केन्द्रवर्ती हों तो जातक 86 वर्ष की स्वस्थ आयु को प्राप्त करता है।
11. तुला लग्न में शुक्र लग्न को देखता हो तथा सभी शुभ ग्रह केन्द्र में हो तो जातक 85 वर्ष की स्वस्थ आयु को भोगता है।
12. तुला लग्न में मेष का मंगल दशम भाव को देखता हो तथा बुध एवं शुक्र की युति केन्द्र-त्रिकोण में हो तो जातक 85 वर्ष की आयु प्राप्त करता है।
13. तुला लग्न में उच्च का बृहस्पति केन्द्र में हो. बुध त्रिकोण में तथा लग्नेश शुक्र बलवान हो तो जातक 80 वर्ष की स्वस्थ आयु भोगता है।
14. तुला लग्न में मंगल पांचवें कुम्भ का, शनि मंष का, सूर्य सातवें शनि के साथ हो जातक 70 वर्ष की आयु को प्राप्त करता है।
15. तुला लग्न में सूर्य+मंगल+शनि हो, चंद्रमा द्वादश में हो. गुरु बलहीन हो तो जातक 70 वर्ष की आयु को भोगता है।
16. शनि लग्न में, मकर का चंद्र चौथे, मगल स्वगृही सातवें. सूर्य दसवें किसी अन्य शुभ ग्रह के साथ हो तो ऐसा जातक राजातुल्य ऐश्वर्य को भोगता हुआ 60 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।
17. तुला लग्न में अष्टमेश शुक्र सातवें हो तथा चंद्रमा पाप ग्रहों के साथ छठे या आठवें स्थान में हो तो व्यक्ति 58 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।
18. तुला लग्न में शनि किसी भी अन्य ग्रह के साथ लग्नस्थ हो. चंद्रमा पाप ग्रहों के साथ आठवें या द्वादश भाव में हो तो ऐसा व्यक्ति सैद्धान्तिक, चरित्रवान एवं विद्धान होते हुए 52 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।
19. तुला लग्न में लग्नेश शुक्र पाप ग्रहों के साथ आठवें हो तथा षष्टम भाव में चंद्रमा पाप ग्रहों के साथ हो, शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो ऐसा जातक मात्र 45 वर्ष तक ही जी पाता है।
20. तुला लग्न में शनि मंगल हो. चंद्रमा पाप ग्रहों के साथ आठवें एवं बृहस्पति छठे पाप ग्रहों के साथ हो तो ऐसा जातक राजा तुल्य ऐश्वर्य को प्राप्त करता हुआ 32 वर्ष की अल्पायु को भोगता है।
21. तुला लग्न के द्वितीय व द्वादश भाव में पाप ग्रह हो, लानेश शुक्र निर्बल हो तथा लग्न, द्वितीय या द्वादश भाव शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो जातक मात्र 32 वर्ष की अल्पायु को प्राप्त करता है।
22. तुला लग्न में बृहस्पति मेष का तथा मंगल मीन का परस्पर घर बदल कर बैठे तो बालारिष्ट योग बनता है ऐसे बालक की मृत्यु 12 वर्ष के भीतर होती है।
23. तुला लग्न में बुध यदि छठे हो. लग्न व चंद्रमा कमजोर हो तो बालारिष्ट योग बनता है। उपचार न करने पर ऐसा जातक छ: वर्ष के पूर्व मृत्यु को प्राप्त करता है।
24. तुला लग्न में शनि सप्तम में नीच का एवं द्वादश भाव में गुरु+शुक्र-राहु हो अन्य शुभ योग न हो तो ऐसा बालक एक वर्ष के भीतर मृत्यु को प्राप्त होता है।
25. तुला लग्न में सूर्य चौथे, अष्टम में बृहस्पति, द्वादश में चंद्रमा हो तथा लग्नेश शुक्र कमजोर हो तो ऐसा बालक जन्म लेते ही शीघ्र मृत्यु को प्राप्त होता है।
26. तुला लग्न के सप्तम भाव में शनि राहु+मंगल+चंद्र की युति शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो ऐसा बालक शीघ्र मृत्यु को प्राप्त होता है।
27. तुला लग्न के दूसरे स्थान में वृश्चिक का मंगल हो तथा चतुर्थ एवं दशम भाव में भी पापग्रह हो तो ऐसा व्यक्ति बहुत कष्ट से जीता है।
28. तुला लग्न के सप्तम भाव में शनि के साथ राहु या केतु हो तो ऐसा जातक मातृघातक होता है।
29. तुला लग्न में लग्नस्थ सूर्य के साथ राहु या केतु हो तो ऐसा बालक मातृघातक होता है।
30. तुला लग्न में लग्नेश शुक्र एवं मंगल दोनों पाप ग्रहों के मध्य हो, सप्तम में पाप ग्रह हो तथा आत्मकारक सूर्य निर्बल हो तो ऐसा जातक जीवन से निराश होकर आत्महत्या करता है।
31. तुला(चर) लग्न में चंद्रमा पाप ग्रहों के साथ हो. सप्तम में शनि हो तो जातक देवता के शाप या शत्रुकृत अभिचार कर्म से पीड़ित रहता है।
32. तुला लग्न में षष्टेश बृहस्पति सप्तम या दशम भाव में हो, लग्न पर मंगल की दृष्टि हो तो व्यक्ति शत्रुकृत अभिचार रोग से पीड़ित रहता है।
33. तुला लग्न में निर्बल चंद्रमा अष्टम स्थान में शनि के साथ हो तो जातक प्रेत बाधा एवं शत्रुकृत अभिचार रोग से पीड़ित रहता हुआ अकाल मृत्यु को प्राप्त करता है।