मन्त्रों के भेद

मन्त्रों के भेद

मन्त्रों के भेद

मन्त्र शास्त्र में हमारे पूर्वाचार्यों ने मन्त्रों के अनेक भेद बताये हैं, जो निम्नप्रकार हैं।

१. शान्ति मंत्र – जिन ध्वनियों के वैज्ञानिक सन्निवेश के घर्षण द्वारा भयंकर से भयंकर व्याधि, व्यन्तर- भूत-पिशाचों की पीड़ा, क्रूर ग्रहपीड़ा, जंगम स्थावर विष बाधा, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, दुर्भिक्षादि, भय, उपसर्ग और चोर आदि का भय शान्त हो जाए उन ध्वनियों के सन्निवेष को शान्ति मन्त्र कहते हैं अथवा मन कषायों के क्षय-उपशम या क्षयोपशम से आत्मस्वभाव में स्थिर हो जाय तो उसे शान्ति मंत्र कहते हैं।

२. पौष्टिक मंत्र – जिन ध्वनियों के वैज्ञानिक सन्निवेश के घर्षण द्वारा सुख सामग्रियों की प्राप्ति, सौभाग्य, यश, कीर्ति, सन्तान आदि की प्राप्ति हो उन ध्वनियों के सन्निवेश को पौष्टिक मंत्र कहते हैं। अथवा जिन भावों या बीज पदों के द्वारा मोक्षमार्ग के प्रति दृढ़ता मजबूती की वृद्धि हो उसे पौष्टिक मंत्र कहते हैं या संसार की अपेक्षा से रहित होकर उपसर्ग परिषहों को जीतने की सामर्थ्य उत्पन्न हो उसे पौष्टिक मंत्र कहते हैं।

३. स्तंभन मंत्र – जिन ध्वनियों के वैज्ञानिक सन्निवेश के घर्षण द्वारा मनुष्य पशु- पक्षी, सर्प, व्याघ्र, सिंह आदि जीवों की गति, हलचल का निरोध हो, भूत-प्रेत, पिशाच आदि दैविक बाधाओं को, शत्रुसेना के आक्रमण तथा अन्य व्यक्तियों द्वारा किये जाने वाले कष्टों को दूर कर उनको जहां के तहाँ निष्क्रिय कर स्तम्भित कर दिया जाये, उन ध्वनियों के सन्निवेश को स्तम्भन मन्त्र कहते हैं। अथवा मन को एकमात्र किसी एक विषय में रोकने को स्तम्भन मंत्र कहते हैं।

४. मोहन मंत्र – जिन ध्वनियों के वैज्ञानिक सन्निवेश के घर्षण द्वारा किसी मनुष्य पशु, पक्षी आदि को मोहित किया जाये, उन ध्वनियों के सन्निवेष को मोहन (मोहित) मंत्र कहते हैं। मेस्मेरिज्म, हिप्नोटिज्म आदि प्रायः इसी के अंग हैं अथवा जिन बीजाक्षरों के द्वारा अपना मन अपनी आत्मा में प्रीति को प्राप्त हो उसे मोहन मंत्र कहते हैं।

५. उच्चाटन मंत्र – जिन ध्वनियों के वैज्ञानिक सन्निवेश के घर्षण द्वारा किसी मनुष्य, पशु, पक्षी अपने स्थान से भ्रष्ट हों, इज्जत सम्मान खो दें अथवा किसी का मन अस्थिर, उल्लासरहित एवं निरुत्साहित होकर पदभ्रष्ट एवं स्थान भ्रष्ट हो जाये उन ध्वनियों के सन्निवेश को उच्चाटन मन्त्र कहते हैं अथवा जिन मंत्र पदों के द्वारा दुर्ध्यानो से मन हटकर धर्मध्यान में लग जाय उसे उच्चाटन मंत्र कहते हैं। अर्थात् आर्तध्यान और रौद्रध्यानों से मन हट जाये उसे उच्चाटन मंत्र कहते हैं।

६. वशीकरण मंत्र – जिन ध्वनियों के सन्निवेश के घर्षण द्वारा इच्छित व्यक्ति को वश में किया जा सके, वह साधक व्यक्ति जैसा कहे सामने वाला वैसा करे, उन ध्वनियों के सन्निवेश को वशीकरण मंत्र कहते हैं। अथवा जिन आत्मभावों के द्वारा इन्द्रिय और मन अपने वश में होते हों उसे वशीकरण मंत्र कहते हैं।

७. आकर्षण मंत्र – जिन ध्वनियों के वैज्ञानिक सन्निवेश के घर्षण द्वारा इच्छित वस्तु या व्यक्ति साधक के पास आ जाये किसी का विपरीत मन भी साधक की अनुकूलता स्वीकार कर ले अथवा दूर रहने वाला मनुष्य, पशु, पक्षी आदि अपनी तरफ आकर्षित हो, अपने निकट आ जाये, उन ध्वनियों के सन्निवेश को आकर्षण मंत्र कहते हैं। अथवा अपना मन रत्नत्रय स्वरूप आत्मा में आ जाये उसे आकर्षण मंत्र कहते हैं।

८. जृंभण मंत्र – जिन ध्वनियों के वैज्ञानिक सन्निवेश के घर्षण द्वारा शत्रु, भूत, प्रेत, व्यन्तर साधक की साधना से भयत्रस्त हो जायें, कांपने लगें अर्थात् मनुष्य, पशु, पक्षी प्रयोग करने वाले की सूचना (आज्ञा ) के अनुसार कार्य करें, उन ध्वनियों के सन्निवेश को जृम्भण मंत्र कहते हैं। अथवा आत्म साधना के अनुसार इन्द्रिय और मन अपना कार्य करें उसे जृंभण मंत्र कहते हैं।

९. विद्वेषण मंत्र – जिन ध्वनियों के वैज्ञानिक सन्निवेश के घर्षण द्वारा दो मित्रों के बीच में फूट पड़े, सम्बन्ध टूट जाए अथवा कुटुम्ब, जाति, देश, समाज, राष्ट्र आदि में परस्पर कलह और वैमनस्य की क्रान्ति मच जाये, उन ध्वनियों के सन्निवेश को विद्वेषण मंत्र कहते हैं।

१०. मारण मंत्र – जिन ध्वनियों के वैज्ञानिक सन्निवेश घर्षण द्वारा जीवों की मृत्यु हो जाये, या साधक आतातायियों को प्राणदण्ड दे सके, उन ध्वनियों के सन्निवेश को मारण मंत्र कहते हैं।

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