शुभ कार्यों में सर्वप्रथम गणेशजी की पूजा क्यों होती हैं?
श्रीगणपत्यथर्वशीर्ष में वर्णित हैं ओंकार का ही व्यक्त स्वरूप गणेशजी देवता हैं। इसी कारण सभी प्रकार के शुभ मांगलिक कार्यों और देवता-प्रतिष्ठापनाओं में भगवान गणेशजी कि सर्वप्रथम पूजा कि जाती हैं।
गणपति शब्द का अर्थ हैं गण(समूह) पति (स्वामी) = समूह के स्वामी को सेनापति अर्थात गणपति कहते हैं। मानव शरीर में पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ और चार अन्तःकरण होते हैं। एवं इस शक्तिओं को जो शक्तियां संचालित करती हैं उन्हीं को चौदह देवता कहते हैं। इन सभी देवताओं के मूल प्रेरक हैं भगवान श्री गणेशजी। भगवान गणपति शब्द ब्रह्म अर्थात् ओंकार के प्रतीक हैं. इनकी महत्व का यह ही मुख्य कारण हैं।
जिस प्रकार से प्रत्येक मंत्र कि शक्ति को बढाने के लिये मंत्र के आगे ॐ आवश्यक लगा होता हैं। उसी प्रकार प्रत्येक शुभ मांगलिक कार्यों के लिये पर भगवान् गणपति की पूजा एवं स्मरण अनिवार्य मानी गई हैं। इस सभी शास्त्र एवं वैदिक धर्म, सम्प्रदायों ने इस प्राचीन परम्परा को एक मत से स्वीकार किया हैं इसका सदीयों से भगवान गणेशजी का प्रथम पूजन करने कि परंपरा का अनुसरण करते चले आ रहे हैं।
पौराणिक कथा
गणेश जी की ही पूजा सबसे पहले क्यों होती है, इसकी पौराणिक कथा इस प्रकार है पद्मपुराण के अनुसार एक दिन व्यासजी के शिष्य ने अपने गुरुदेव को प्रणाम करके प्रश्न किया कि गुरुदेव! आप मुझे देवताओं के पूजन का सुनिश्चित क्रम बतलाइये। प्रतिदिन कि पूजा में सबसे पहले किसका पूजन करना चाहिये?
तब व्यासजी ने कहा – विघ्नों को दूर करने के लिये सर्वप्रथम गणेशजी की पूजा करनी चाहिये। पूर्वकाल में पार्वती देवी को देवताओं ने अमृत से तैयार किया हआ एक दिव्य मोदक दिया। मोदक देखकर दोनों बालक (स्कन्द तथा गणेश) माता से माँगने लगे। तब माता ने मोदक के प्रभावों का वर्णन करते हुए कहा कि तुम दोनो में से जो धर्माचरण के द्वारा श्रेष्ठता प्राप्त करके आयेगा, उसी को मैं यह मोदक दूँगी।
माता की ऐसी बात सुनकर स्कन्द मयूर पर आरूढ़ हो कर अल्प मुहर्तभर में सब तीर्थों की स्नान कर लिया। इधर लम्बोदरधारी गणेशजी माता-पिता की परिक्रमा करके पिताजी के सम्मुख खड़े हो गये। तब पार्वतीजी ने कहा – समस्त तीर्थों में किया हुआ स्नान, सम्पूर्ण देवताओं को किया हुआ नमस्कार, सब यज्ञों का अनुष्ठान तथा सब प्रकार के व्रत, मन्त्र, योग और संयम का पालन – ये सभी साधन माता-पिता के पूजन के सोलहवे अंश के बराबर भी नहीं हो सकते। इसलिये यह गणेश सैकड़ों पुत्रों और सैकड़ों गणों से भी बढ़कर श्रेष्ठ है। अतः देवताओं का बनाया हुआ यह मोदक मैं गणेश को ही अर्पण करती हूँ।
माता-पिता की भक्ति के कारण ही गणेश जी की प्रत्येक शुभ मंगल में सबसे पहले पूजा होगी। तत्पश्चात् महादेवजी बोले – इस गणेश के ही अग्रपूजन से सम्पूर्ण देवता प्रसन्न हो जाते हैं। इस लिये तुम्हे सर्वप्रथम गणेशजी की पूजा करनी चाहिये।