कृषि कर्म आजीविका उपार्जन के लिए तो हैं ही, जगत के प्राणियों के आहार की पूर्ति के लिए भी अनिवार्य हैं। अतएव कृषि कर्म यथा शक्ति आजीविका के लिए योग्य ही है।
कहावत -
'उत्तम खेती मध्यम बान, अधम चाकरी निश्चय जान'
अर्थात् कृषि कार्य श्रेष्ठ कार्य है, वाणिज्य मध्यम तथा सेवा कार्य अधम कार्य है।
जैन परंपरा में वर्तमान युग के प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव जी ने इसी भावना को दृष्टिगत रखते हुए विश्व समुदाय की एक नया उद्बोधन दियाष्
'ऋषि बनो या कृषि करो'
यदि संसार से विरक्त हो तो ऋषि बनो, यदि गृहस्थ धर्म का पालन करना है तो कृषि करो।
कृषि भूमि का वास्तु विचार करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना भूस्वामी के लिये हितकारी होता हैं -
महत्वपूर्ण संकेत
1. कृषि भूमि का आकार चौकोर हो तथा उत्तर पूर्व या ईशान की ओर उसका उतार हो तो श्रेष्ठ हैं। यदी चौंकोर न हो तो चौकोर करवाए।
2. कुआ या बोरवेल ईशान या पूर्व या उत्तर में करवाए। दक्षिण में कुंआ न खुदाए।
3. बड़े वृक्ष दक्षिण और पश्चिम की ओर लगाएं।
4. छोटे पौधे वाली खेती पूर्व एवं उत्तर की ओर करें।
5. खेत के उत्तर पूर्व या ईशान में कोई प्राकृतिक जलाशय, नदी, नहर, कुंआ हो तो सर्वश्रेष्ठ है।
6. खेती में बहुस्थावर, त्रस जीवघातक फसल नहीं लगाना चाहिए।
7. तम्बाकू कन्दमूल आदि की कृषि नहीं करना चाहिए।
8. कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
9. बीजारोपण का कार्य दक्षिण से उत्तर की ओर करना चाहिए।
10. यथासंभव कृषि कार्य जुताई, बोवाई, कटाई, निदाई आदि उचिंत मुहूर्त में करना श्रेयस्कार हैं।
11. उत्तम विधि से कृषि करने से उत्तम परिणाम अवश्य ही मिलते हैं।