अस्तग्रह का प्रभाव
सूर्य सान्निध्य के कारण ग्रह अस्त हो जाते हैं। सूर्य से 12 डिग्री आगे या पीछे तक चन्द्रमा; सूर्य से 17 डिग्री आगे या पीछे तक मंगल; सूर्य से 14 डिग्री आगे या पीछे तक मार्गी बुध; सूर्य से 12 डिग्री आगे या पीछे तक वक्री बुध; सूर्य से 11 डिग्री आगे या पीछे तक गुरु; सूर्य से 10 डिग्री आगे या पीछे तक मार्गी शुक्र; सूर्य से 8 डिग्री आगे या पीछे तक वक्री शुक्र; सूर्य से 15 डिग्री आगे या पीछे तक शनि-ग्रहों के अस्त होने के नियामक हैं। ज्योतिष शास्त्र में अस्त ग्रहों को नीच राशिस्थ, शत्रुराशिस्थ, त्रिकस्थ तथा त्रिकेश आदि की तरह अशुभ माना गया है। अस्त ग्रहों को मूढ़ की संज्ञा दी गई है।
मूढोऽपि नीचरिपुगोऽष्टमषड्व्ययस्थो।
दुःस्थः स्मृतो भवति सुस्थे इतीतरः स्यात्॥ – फलदीपिका
सामान्य नियम तो यही है कि सूर्य द्वारा अस्त ग्रह फल, भावेशादि अपने अन्य फल देने में असमर्थ रहेंगे। किन्तु, उत्तरकालामृत के अनुसार, यदि षष्ठेश, अष्टमेश तथा द्वादशेश पापाक्रान्त अथवा अस्त हों तो निर्बलता के कारण उनकी अशुभता नष्ट हो जाने से वे शुभ फल देंगे।
कुछ शोधकर्ताओं का ऐसा कहना है कि सूर्य सभी ग्रहों का राजा होता है। अतः सूर्य द्वारा अस्त ग्रह सूर्य के अनुकूल फल देंगे। कहने का आशय यह है कि जिनका जन्म-लग्न अथवा चन्द्रलग्न या रविलग्न मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक या धनु हो तो उनके अस्त ग्रह अपनी दशा या अन्तर्दशा में शुभफल देंगे; अन्यथा अस्त ग्रह कष्ट फल ही देंगे।
यद्यपि कुछ विद्वानों के अनुसार, विशेष परिस्थिति में अस्त ग्रह शुभ फल दे सकते हैं किन्तु, सामान्य नियम यही है कि अस्त ग्रह कष्ट ही देंगे। शुभ भावेश अस्त हों तो शुभ फल नाममात्र को मिलेंगे। लग्नेश/नवमेश/पंचमेश अस्त हों तो उनके रत्न अवश्य धारण करें। अष्टमेश, द्वितीयेश, सप्तमेश तथा लग्नेश अस्त या पापाक्रान्त हों तो वे अकाल मृत्यु तक दे सकते हैं। ऐसे ग्रहों की दशा में दान-पुण्य तथा शान्ति अनिवार्य है।