विहार सम्बन्धी भूलें एवं जानने योग्य बातें
आहार का मतलब है जो आप खाते हो और विहार का मतलब है जो आप करते हो। यहाँ कुछ विहार सम्बंधित कुछ जानकारी दी हुई है जो आपके लिए काफी उपयोगी है।
प्रायः लोग मलों के वेगों को रोकने का प्रयास किया करते हैं जैसे मल, मूत्र, अपानवायु, छींक, भूख,प्यास,नींद,खाँसी, श्रम के कारण श्वाँस, जम्हाई. आँसू, वमन या वीर्य के वेगों को रोका करते हैं और इनके कारण नाना प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। लोग रात्रि में देर तक जागते हैं और दिन में देर तक सोते हैं, जब कि सारे विश्व के मनीषी यह मानते हैं कि प्रात:कालीन उगते सूर्य की गुलाबी किरणें (Ultra violet Rays) नंगे शरीर पर पड़ने से अमित शक्ति व आरोग्य प्राप्त होता है। आरोग्य वर्द्धन के लिए धूप सेवन के विषय में श्रीमद् रामचरित मानस में श्री तुलसीदास जी ने लिखा है 'सेइये भानु पीठ उरु आगी', अर्थात् सूर्य का सेवन पीठ पर करना चाहिए। विश्व के बहुत से उपचारक धूप की किरणों के द्वारा रोगों के उपचार किया करते हैं।
प्रात: उठते ही भरपेट शुद्ध ताजा पानी पीना चाहिए । प्रायः मनुष्य तेल, मालिश और पर्याप्त मेहनत, कसरत या खेलकूद नहीं करते हैं और स्वार्थ या लोभ के कारण अपनी शक्ति एवं सामर्थ्य से अधिक भोजन अथवा कार्य करते हैं या विषयों का मर्यादा से अधिक सेवन करते हैं। अपनी शान दिखाने के लिए अटपटे कार्य जो उनकी सामर्थ्य से बाहर हैं,करते हैं । जैसे मौसम के अनुसार कपड़े नहीं पहनते, शक्ति से अधिक खाने का, बोझ उठाने का या किसी वस्तु को खींचने का कार्य आदि करते हैं जिससे रोगी होते हैं और कमर के पास रीढ़ की हड्डी की गुरिया, खिसक जाती है, अर्थात् स्लिप डिस्क के कारण कमर दर्द आदि हो जाते हैं।
लोग प्रायः एकदम गर्म वातावरण से आकर कूलर के सामने बैठ जाते हैं और ठंडे वातावरण से उठकर गर्म वातावरण (धूप) में चले जाते हैं, जिनसे दर्दो के रोग या जुकाम आदि हो जाते हैं।
भोजन के बाद छ: घण्टे तक स्त्री संग करना हानिकारक होता है।
माताओं को स्नान, क्रोध या सहवास के आधे घंटे बाद शान्त होकर ही बच्चों को स्तनपान कराना चाहिये, नहीं तो बच्चे रोगी हो जाते हैं। माताओं को लेटे-लेटे,करवट से लेटे बच्चे को स्तन पान नहीं कराना चाहिए इससे बच्चों को कान बहने के रोग हो जाते हैं। बच्चों की कमर में करधनी अवश्य बाँधनी चाहिए, इससे आँतें उतरने की सम्भावना मिट जाती है।
नेत्रों को तेज धूप या तेज रोशनी से और धूल व धुएं से बचाये रखना अति आवश्यक होता है । दिन में तीन चार बार नेत्रों को मुख में जल भर कर शीतल जल के स्वच्छ पानी से छींट देकर धोते रहना चाहिए और रात्रि में कोई सुरमा, काजल या नेत्र-रक्षक बिन्दु नेत्रों में डालनी चाहिए।