न करने योग्य शारीरिक चेष्टाएँ
१. दोनों हाथों से अपना सिर नहीं खुजलाना चाहिये।
२. दाँतों से नाखून, रोम अथवा केश नहीं चबाना चाहिये।
३. अकारण मिट्टी के ढेले को नहीं फोड़ना चाहिये और तिनके नहीं तोड़ना चाहिये।
४. जो मनुष्य ढेला मसलता है, नाखून से तृण काटता है, दाँतों से नख काटता है, दूसरोंकी निन्दा करता है तथा अशुद्ध रहता है, वह शीघ्र नष्ट हो जाता है।
५. अपने शरीर और मुख, नख आदि को न बजाये अर्थात् उनसे बाजे का काम न करे।
६. यदि शुभ की इच्छा हो तो नख से नखको नहीं काटना चाहिये।
७. पैर से आसन को खींचकर नहीं बैठना चाहिये।
८. पैर से कभी पैर न धोये।
९. काँसे के बर्तन में पैर न धोये और कुल्ला न करे।
१०. दाँतों को परस्पर रगड़ना नहीं चाहिये।
११. सिर, हाथ, पैर आदि को कम्पना (हिलाना) नहीं चाहिये।
१२. पैर से पैर को न दबाये अर्थात् पैरके ऊपर पैर न रखे।
१३. स्नान, दान, जप, होम, भोजन, देवपूजन, स्वाध्याय आर पितृतर्पण - ये कार्य प्रौढ़ पाद होकर (उकड़ें बैठकर) नहीं करने चाहिये।
१४. सिर के बाल पकड़कर खींचना और सिरपर प्रहार करना वर्जित है।
१५. बुद्धिमान् मनुष्यको मल, मूत्र, अपानवायु, डकार, वमन, छींक, जम्हाई, भूख, प्यास, आँसू, निद्रा, शुक्र और परिश्रम से उत्पन्न श्वास के वेगों को नहीं रोकना चाहिये। इनके वेगों को रोकने से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं।
१६. भोजन, देवपूजा, मांगलिक कार्य और जप-होमादि के समय तथा श्रेष्ठ पुरुषों के सामने थूकना और छींकना नहीं चाहिये।
१७. वायु, अग्नि, जल, सूर्य, चन्द्रमा, ब्राह्मण आदि पूज्योंके सामने थूकना नहीं चाहिये। जहाँ जनसमूह एकत्र हो, भोजनका समय उपस्थित हो, जप, होम, अध्ययन और अन्य मांगलिक कार्य होने वाले हों, वहाँ उस समय मुख या नाकसे कफका त्याग नहीं करना चाहिये।
१८, बहुत ज़ोर से न हँसे और शब्द करते हुए अधोवायु न छोड़े।
१९. मुखको बिना ढके सभामें न जोरसे हँसे, न जम्हाई ले, न खाँसे, न छींके और न डकार ही ले।
२०. अकारण थूकना नहीं चाहिये।
२१. अपने दोनों हाथों को पीठ के पीछे जोड़कर न रखे।
२२. गुरु, देवता और अग्नि के सम्मुख पैर फैलाकर नहीं बैठना चाहिये।
गीता प्रेस गोरखपुर की पुस्तक क्या करे क्या ना करे से साभार