ज्योतिष जगत में सूर्य के बाद सर्वाधिक प्रभावशाली चन्द्र माना गया है। विदेशी पाश्चात्य ज्योतिष में जो स्थान सूर्य राशि को प्राप्त है वही स्थान भारतीय ज्योतिष में चन्द्र राशि को प्राप्त है।
चतुर्थ स्थान का चन्द्र पानी से संबन्धित व्यापार से व्यक्ति को लाभ देता है। व्यक्ति को शुभ चंद्र होने पर कृषि जमीन, जायदाद, मकान, वाहन, माता, ससुर, सुख अच्छा प्राप्त होता है और जातक गो, बाहाण, देवादि में पूर्ण निष्ठा श्रद्धा भक्ति के साथ रहता है। जातक शीलवान सुखी, नए मकान, वाहन को शीघ्र प्राप्त करने वाला, यदि शीघ्र विवाह के योग हो तो २२ वर्ष में पुत्र संतान को प्राप्त करने वाला, पुण्यवान, उदार, उच्चपद पर स्थित, विद्वान, भाग्यवान्, मातृ पक्ष से लाभ, तथा माता के कारण भाग्योदय में मदद प्राप्त होती है। मातृभक्ता, देवी उपासक जीवन का उत्तरार्ध अधिक सुखी होता है । कार, ट्रक, ट्रैक्टर, बस, हैलिकाप्टर, विमान यादि चन्द्र प्रबलता के अनुसार जातक को प्राप्त होते हैं। कारखाने, खदान आदि से जातक को अच्छा लाभ प्राप्त होता है। बली चन्द्र ससुराल पक्ष से पर्याप्त धन सम्पत्ति आदि को दिलाने वाला तथा विवाह के पूर्व सगाई के साथ ही भाग्योदय का कारण होता है। अशुभ चन्द्र होने पर जातक पर स्त्री गामी, बन्धु विरोधी तथा परिवार से कलह करके अलग रहने वाला, मलिन मन का, तथा बार-बार निजस्थान को बदलने वाला, दुकान, कारखाने में, शहर, प्रान्त, देश विदेश आदि में भटकने याला, मानसिक रूप से हमेशा परेशान रहने वाला, मस्तिष्क रोगी, क्रोधी, तुनुक-मिजाज, अतिभावुक प्रकृति का होता है।
शुभ फल पुरुष राशि में अधिक प्राप्त होते है।
अग्निराशि (१/५/८) में अशुभ चन्द्र जातक को माता का सुख प्राप्त न होकर सदैव अन्तविरोध माता से बनती है। जायदाद का सुख भी प्राप्त नहीं होता तथा स्वयं को अर्जित सम्पत्ति भी किसी कारण नष्ट हो जाती है।
पृथ्वी राशि (२।६।१०) तथा नीच (८) राशि का चन्द्र जातक को स्वयं की कोई अचल सम्पत्ति बनाने नहीं देता।
शेष जल राशि (४/१२) व तुला राशि में शुभ चंद्र शीघ्र ही पैतृक सम्पत्ति के लाभ के साथ उसे और अधिक बढ़ाने में सहायक सिद्ध होता है। अशुभ चन्द्र होने पर ३२ वर्ष की आयु तक सतत जीवन में संघर्ष तथा माता, पिता, सास, ससुर मित्रवर्ग से कष्ट तथा परेशानी होती है। माता, पिता, सास, ससुर अल्पायु भी देखे गये हैं। विवाह के बाद धीरे-धीरे प्रगति होती है जो ४० से ६० वर्ष की आयु में बहुत अच्छी स्थिति बनाने में सफल होते हैं। इन्हें मेडिसिन, स्त्रियों से सम्बन्धित वस्तु के व्यापार में लाभ प्राप्त हो सकता है।
चन्द्र सुख स्थान की अपेक्षा अन्य केन्द्र स्थान (१/१०) तथा त्रिकोण (९/५) एवं एकादश में विशेष शुभ फल देता है । अशुभ चन्द्र के सुख स्थान में होने पर उसकी दशा में जातक का धन परस्त्री को वश में करने के लिए व्यर्थ ही नष्ट होता है। माता तथा ससुर के भविष्य जानने के लिए चन्द्र को लग्न मानकर ग्रह योगों का विचार करना चाहिये । चन्द्र कहीं भी अकेला शुभ दृष्ट हो तो जातक में स्त्री के गुण कोमलता आदि विशेष देखने को प्राप्त होते हैं।
अशुभ चंद्र के फल का कम करने के लिए बच्चों को चांदी का चंद्र बड़ों को बिना छेद का मोती ४ रत्ती तक का चांदी में धारण करना सोमबार के दिन शुभ होता है। मोती की पिष्ठी या भस्म वैद्य सलाह से अथवा केलशियम टेबलट्स लेना उपयोगी होता है। काव्यत्व को देने वाला श्री चंद्र होता है। अशुभ चंद्र भी यदि साहित्यक क्षेत्र के योगों के साथ हो तो श्रेष्ठ आलोचक बना देता है । शीत विकार, सर्दी खांसी जलोदर स्मरणशक्ति संबन्धित विकार का कारण अशुभ चंद्र ही होता है। देवी या शंकर उपासना शीघ्र फलदायी होती हैं। (पुरुष राशि में शिवोपासना) लोक कर्म विभाग, कांच से संबन्धित कार्य, वेधशाला, सिंचाई नमक के कारखाने, आयात निर्यात, दूध, बनस्पति, वैद्यक (रसायन वैद्य) प्राणीशास्त्र चावल, कपास श्वेत वस्तुएं चंद्र के अधिकार में होती हैं। चंद्र के प्रभाव में अधिक रहनेवाला जातक इन्हीं से सम्बन्धित रहता है। शुभ होने पर इनके व्यापार से लाभ अन्यथा हानि होती है।
शुभ और सम राशि का चन्द्र गृहस्थी में व्यस्त, धनसंग्रह करने वाला, दयालु, उपकारी, सेवाभावी, काव्यनाटक, उपन्यास का लेखक स्वभाव से विनोदी, व्यङ्ग करने वाले, कला प्रेमी, होते हैं।
विषम राशि में अशुभ होने पर स्वार्थी, विरक्त, कम मेहनत से अधिक धन पैदा करने की सोचने वाला, आलसी, चितातुर, चोर, व्यभिचारी, अत्याचारी भ्रष्टाचारी, कपटी, चालाक, बदमाश, ठग, हत्यारा, नीच कर्म करने वाला होता देखा गया है। (शुभ होने पर नहीं)