कारक - कुंडली विश्लेषण के लिए भाव और भावेश के अतिरिक्त एक बात का विचार और करना चाहिए जिसे 'कारक' कहते हैं।
कारक दो प्रकार के होते हैं - भावकारक और स्थिर कारक।
भावकारक
प्रथम भाव : सूर्य।
द्वितीय भाव : बृहस्पति।
तृतीय भाव : मगल।
चतुर्थ भाव : चन्द्रमा और बुध।
पंचम भाव : बृहस्पति।
षष्ठ भाव : शनि, मंगल।
सप्तम भाव : शुक्र।
अष्टम भाव : शनि।
नवम भाव : सूर्य, बृहस्पति।
दशम भाव : सूर्य, बुध, बृहस्पति, शनि।
एकादश भाव : बृहस्पति।
द्वादश भाव : शनि।
किसी भाव का पूर्ण शुभ फल तभी प्राप्त होता है जब भाव, भावेश और कारक तीनो बलवान होते हैं।
वस्तुओं के स्थिर कारक :
सूर्य - राजत्व, विद्रुम (मूगा), रक्त वस्त्र, माणिक्य, राज्य, वन, पर्वत, क्षेत्र (खेत), पिता आदि का कारक सूर्य है।
चन्द्रमा - माता, मन, पुष्टि, गन्ध, रस, ईख, गेहूँ, क्षार, पृथ्वी, ब्राह्मण, शक्ति, कपास, अन्न, चाँदी आदि, का कारक चन्द्रमा है।
मंगल - सत्व (ताकत, हिम्मत), मकान, भूमि, शील, चोरी, रोग, भाई, पराक्रम, अग्नि, साहस (दिलेरी), राजा, राज्य, शत्रु आदि का कारक मंगल है।
बुध - ज्योतिष, मामा, गणित (हिसाब), नाच, वैद्य (डाक्टरी), हास्य (हंसी-मजाक), लक्ष्मी, शिल्प, विद्या आदि का कारक बुध है।
बृहस्पति - अपना कार्य, यज्ञ इत्यादि कर्म, देवता, ब्राह्मण, धर्म, सोना, वस्त्र, पुत्र, मित्र, पालकी आदि का कारक बृहस्पति है।
शुक्र - पत्नी, अन्य स्त्री, सुख, काम-शास्त्र, गति, शास्त्र, काव्य, पुष्प, सुकुमारता, यौवन, जेवर, चांदी, सवारी, लोक, मोती, वेभव (ऐश्वर्य) कविता, रस आदि का कारक शुक्र है।
शनि - भैस, ऊँट, घोड़ा, हाथी, तेल, वस्त्र, श्रृंगार, यात्रा, मृत्यु, सर्वराज्य, आयुध (शस्त्र), शूद्र, नीलम, बाल (केश), शिल्प, शूल (पीडा दर्द), रोग, दास, दासी, आयु आदि का कारक शनि है।
राहु - प्रयाण (यात्रा या मृत्यु), समय, सर्प, रात्रि, खोई हुई वस्तु, छिपा हुआ धन, सट्टा का कारक राहु है।
केतु - व्रण (घाव), चर्म (शरीर की जिल्द ) की बीमारी, अतिशूल (अत्यन्त पीडा), मूर्ख, दु.ख प्रादि का कारक केतु है।