कोरोना वायरस महामारी, ज्योतिष और वास्तु विश्लेषण
यहाँ हम कुछ शास्त्रों के श्लोक दे रहे है ताकि हम आपको कोरोना वायरस covid-19 महामारी के ज्योतिषीय कारण बता सके।
विश्वादिसमयान्तश्च दक्षिणो मार्ग उच्यते। एते बृहस्पतेर्मार्गा नव नक्षनजास्त्रयः॥
(विश्वादिसमयान्तश्च) उत्तराषाढ़ा से भरणी तक (दक्षिणो मार्ग उच्यते) गुरुका दक्षिण मार्ग होता है (एतेबृहस्पतेर्मार्गा) इतने गुरुके मार्ग (नव नक्षत्रजास्त्रयः) नौ नक्षत्र वाले होते हैं।
भावार्थ-उसी प्रकार गुरुका उत्तराषाढ़ा से भरणी तक नौ नक्षत्र दक्षिण मार्ग है, इस प्रकार गुरु के नौ-नौ मार्ग जानना चाहिये।
मूषके तु यदा ह्रस्वो मूलं दक्षिणतो व्रजेत्।दक्षिणातस्तदा विन्धादनयोर्दक्षिणे पथि॥
(यदा) जब (मूषके तु) केतु (ह्रस्वो) लघु होकर (मूलं दक्षिणतो व्रजेत्) दक्षिण से मूल नक्षत्र की ओर जाता है तो (अनयोर्दक्षिणे पथि) तो गुरु और केतु दोनों ही (दक्षिणतस्तदा विन्द्याद्) दक्षिणमार्गी कहलाते हैं।
भावार्थ-जब केतु लघु होकर दक्षिण से मूल नक्षत्र की तरफ जाता है तो गुरु और केतु दोनों ही दक्षिणमार्गी कहे जाते हैं।
अनावृष्टिहता देशा बुभुक्षा ज्वर नाशिताः। चक्रारूढा प्रजास्तत्र बध्यन्ते जाततस्कराः॥
इन दोनों के दक्षिण मार्ग में रहने से (अनावृष्टिहता देशा) वर्षा के नहीं होने से देश नष्ट हो जाता है (बभक्षा ज्वर नाशिता:) ज्वर के रोग से व्यक्तियों की मृत्यु होती है (तत्र चक्रारूढा प्रजा:) वहाँ की प्रजा चक्रारूढ के समान हो जाती है (बध्यन्ते जाततस्करा:) चोरों के द्वारा सब दुःखी होते हैं।
इन दोनों के दक्षिणमार्ग में रहने से वर्षा के नहीं होने पर देश का नाश होता है ज्वर के रोग से सबकी मृत्यु हो जाती है, वहाँ की प्रजा चक्रारूढ के समान घूमती है और चोरों के द्वारा कष्ट प्राती हैं।
इस कोरोना के चक्र की शुरुआत 26 दिसंम्बर के सूर्यग्रहण से होती है। जब सूर्य, चंद्र और बृहस्पति ये तीनों ग्रह बुध के साथ मूल(गंडातंका) नक्षत्र में, साथ ही राहु, केतु और शनि ग्रसित थे। इसके बाद ही अज्ञात कारण का एक निमोनिया (covid-19) की सुचना चीन द्वारा 31 दिसंबर 2019 को WHO को दी गई।
१२ फरवरी से केतु के मुल नक्षत्र में आने से ही एक ही दिन में १४१५३ केस कोरोना वायरस के चिन्हित किये गए इसके पहले ११ फ़रवरी तक विश्व में १५ दिन से रोज २००० केस ही नए आ रहे थे १२ फ़रवरी से इसने अपना रूप दिखाना शुरू कर दिया था भारत में भी १४ फ़रवरी से लाक डाउन की आवाज उठने लगी थी।
साथ ही उत्तराषाढा नक्षत्र में शनि विचरण करता हो तो यवन, शबर, भील आदि पहाड़ी जातियों को हानि करता है। इन जातियों में अनेक प्रकारके रोग फैल जाते हैं तथा आगरा में भी संघर्ष होता है। मकर के शनि में सोना-चाँदी, ताँबा, हाथी, घोड़ा, बैल, सूत, कपास आदि पदार्थों का भाव महंगा होता है, क्योंकि ऐसे शनि में वर्षा नहीं होने के कारण धान्योत्पत्ति नहीं होती, रोग के कारण प्रजा का नाश होता है, अग्नि का भय होता है इन सब कारणों से प्रजा में भय और अशान्ति होती है।
चैत्र मास में गुरु का राशि परिवर्तन होने जा रहा है। चैत्र में गुरु का राशि परिवर्तन होने से नारियों को सन्तान की प्राप्ति. सुभिक्ष, उत्तम वर्षा, नाना व्याधियों आशंका एवं संसार में राजनैतिक परिवर्तन होते हैं। जापान, जर्मन, अमेरिका, इंग्लैण्ड, रूस, चीन, श्याम(थाईलैण्ड) , बर्मा, आस्ट्रेलिया, मलाया(मलेशिया) आदि में मनमुटाव होता है, राष्ट्रों में भेदनीति कार्य करती है गुटबन्दी का कार्य आरम्भ हो जाने से परिवर्तन के चिह्न स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगते है। २०२० के प्रारंभ में गुरु धनु राशी में अस्त होने से भय, आतंक एवं रोग में वृद्धि दिखाई दी।
गुरु 29 मार्च 2020 से 15 मई 2020 तक गुरु मार्गी होकर शनि की राशि मकर में गोचर करेंगे मकर के गुरु में वर्षाभाव एवं दुर्भिक्ष होता है। 16 मई से 30 जून तक गुरु मकर राशी पर वक्री होगे जिससे धान्य सस्ता होता है और आरोग्यता की वृद्धि होती है। मकर राशि में वक्री गुरु भी उच्च ग्रह के समान ही उत्तम फल देगा।
वही 31 मार्च से 13 अप्रैल तक सूर्य रेवती नक्षत्र में होंगे। यह मोक्ष का नक्षत्र है। यहां सूर्य कमजोर होंगे और संकट बड़ा रूप ले सकता है या कोई नया संकट आ कर खड़ा हो सकता है। 14 अप्रैल से 27 अप्रैल तक वह अपनी उच्च राशि मेष के नक्षत्र अश्विनी से गोचर करेंगे। उत्तर-पूर्व के देशो में महामारी से बचाव हो सकता है, आरोग्यता की और बड़ा कदम उठ सकता है।
२२ मार्च से २८ अप्रेल तक मकर राशि के मंगल में धान्य पीड़ा, फसल में अनेक रोगों की उत्पत्ति, मवेशी को कष्ट, चारे का अभाव, व्यापारियों को अल्प लाभ, पश्चिम के व्यापारियों को हानि, गेहूँ, गुड़ और मशाले के मूल्यमें दुगुनी वृद्धि एवं उत्तर भारत के निवासियों को आर्थिक सकंट का सामना करना पड़ता है।
कुल मिला कर ज्योतिषीय आधार पर १६ मई के बाद ही महामारी को काबू में किया जा सकेगा।
मूल(गंडातंका) नक्षत्र प्रलय को दर्शाता है। इस पर निरति का अधिपत्य है। वास्तु के अनुसार दक्षिण-पश्चिम(नैऋत्य) दिशा में देवता निरति है जिन्हें दैत्यों का स्वामी कहा जाता है। दक्षिण-पश्चिम दिशा में राहू का वास होता है। उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) के देवता सूर्य हैं जिन्हें रोशनी और ऊर्जा तथा प्राण शक्ति का मालिक कहा जाता हैं। उत्तर-पूर्व दिशा में देवताओं के गुरु बृहस्पति और मोक्ष कारक केतु का भी वास रहता है।
पूर्वोत्तर एशिया से चीन, जापान, ताइवान, मंगोलिया, उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया हैं। उत्तर पूर्वी यूरोपीय देशों रूस, पूर्वी जर्मनी, पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया, रोमानिया, यूगोस्लाविया, हंगरी, बुल्गारिया और अल्बानिया शामिल हैं। पूर्वोत्तर अफ्रीका के देश सूडान, इथियोपिया, युगांडा और केन्या हैं सूडान से लगा हुआ ईजिप्ट (मिडिलईस्ट) है।
उत्तर-पूर्व (गुरु बृहस्पति और मोक्ष कारक केतु का स्थान) सीमा से लगा हुआ है चाइना, फिर भी भारत में महामारी नैऋत्य कोण (राहु और केतु स्थान) केरल से फेलना शुरू हुई। इसका प्रभाव उत्तरप्रदेश, केरल में सर्वाधिक रहेगा।
दक्षिण-पश्चिमी यूरोपीय देश में स्पेन, पूर्वोत्तर एशिया में चीन, उत्तर पूर्वी यूरोपीय में पूर्वी जर्मनी, दक्षिण पश्चिम एशिया से ईरान, ये सब स्थान राहू केतु के है। बीमारी को फेलाने में राहू केतु का पूरा योगदान रहा।