अष्टमेश शुभ या अशुभ
केन्द्र शस्य सतोऽसतोऽशुभशुभौ कुर्याद्दशा कोणपाः
सर्वे शोभनदास्त्रिवरिभवपा यद्यप्यनर्थप्रदाः।
रन्ध्रेशोऽपि विलग्नपो यदि शुभं कुर्याद्रविर्वा शशी
यद्येवं शुभदः पराशरमतं तत्तद्दशायां फलम्॥
यदि केन्द्र का मालिक सौम्य-ग्रह है तो वह अशुभ फल देता है और यदि केन्द्र का स्वामी अशुभ ग्रह हो तो शुभ फल देता है। त्रिकोण (लग्न से नवें, पांचवे घर के स्वामी) के स्वामी हमेशा शुभ फल ही देते है। लग्न को केन्द्र स्थान भी मानते हैं कोण स्थान भी। इलिये लग्नेश सदैव शुभ ही होता है। ३,६,११ के स्वामी चाहे शुभ हों अनर्थ करने वाले ही होते हैं। अष्टमेश यदि लग्नेश भी हो (यह तभी होता है जब जन्म लग्न मेष या तुला हो) तो शुभ होता है। अष्टमेश यदि सूर्य या चन्द्रमा हो तो भी शुभ फल करते हैं। यह तभी होता है जब धनु या मकर लग्न हो। इससे परिणाम यह निकला कि मेष, तुला, धन और मकर इन चार लग्नों के अतिरिक्त यदि कोई लग्न हो तो अष्टमेश अशुभ फल ही करता है। ऐसा पराशर का मत है। ग्रह अपनी-अपनी दशा में अपना फल करते हैं।