दोनों हाथों से अपना सिर नहीं खुजलाना चाहिये। दाँतों से नाखून, रोम अथवा केश नहीं चबाना चाहिये। पैर से कभी पैर न धोये। सिर के बाल पकड़कर खींचना और सिरपर प्रहार करना वर्जित है।
केन्द्रेश और त्रिकोणेश का आपस मे सम्बन्ध होना 'योग' कहलाता है । 'राज' शब्द ऐश्वर्य-बोधक है इस कारण कुण्डली में कोई भी योग हो, यदि उसका फल शुभ, धनकारक, समृद्धि या उत्कर्ष करने वाला होता है तो उसे ज्योतिषियो की भाषा में 'राजयोग' कहते हैं।
चतुर्थ स्थान का चन्द्र पानी से संबन्धित व्यापार से व्यक्ति को लाभ देता है।